डिग्रीधारी लोग भी मनरेगा के तहत गढ्ढा खोदनेे को मजबूर : मायावती 

नई दिल्ली: बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती  ने आज कहा कि देश में कोरोना वायरस व लाॅकडाउन के कारण लाखों की संख्या में बेरोजगार व मजलूम बनकर खासकर यू.पी. में अपने घर वापसी करने वालों की उनकी योग्यता ,क्षमता व दक्षता के मुताबिक सरकारी रजिस्टेªशन होने के बावजूद भी, उन्हें रोजगार उपलब्ध नहीं होने से पढ़े-लिखे डिग्रीधारी लोग भी मनरेगा के तहत गढ्ढा खोदने की दैनिक मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं जिसका नकारात्मक प्रभाव देश व समाज तथा शिक्षा व्यवस्था पर भी पड़ रहा है कि आखिर पढ़ाई किस काम की, जिसे रोका जाना चाहिए।
मायावती  ने कहा कि आए दिन यह खबर आती रहती है कि यू.पी. सरकार अपने मूल राज्य लौटने वाले लाखों प्रवासी श्रमिकों को रोजी-रोटी की व्यवस्था करने के लिए कभी अधिकारी व कभी मंत्रियों के समूह गठित कर रही है, उनका रजिस्टेªेशन आदि किया जा रहा है, जो कुछ हुआ भी है, लेकिन उसका सार्थक परिणाम कुछ नहीं निकल पा रहा है, जिस कारण अपना पेट पालने की मजबूरी के लिए पढ़े-लिखे डिग्रीधारी युवाओं को भी मनरेगा के तहत गढ्ढा खोदने की मजदूरी करनी पड़ रही है। उनके माँ-बाप व अन्य क्या सोचते होंगे। इसलिए उनकी दयनीय हालात पर केन्द्र व राज्य सरकारों को जरूर गंभीरतापूर्वक सोच-विचार करके समस्या का समाधान शीघ्र निकालना चाहिए।
प्रवासी श्रमिकों की लगातार जारी समस्याओं का संज्ञान लेकर उस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए माननीय न्यायालय का आभार प्रकट करते हुए सुश्री मायावती जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का थैंक्स है कि उन्होंने सकारात्मक हस्तक्षेप किया, जिसके निर्देशों पर अब केन्द्र व राज्य सरकारों को बिना देरी किये सख्ती से अमल शुरू कर देना चाहिए।
उन्हांेंने कहा कि वैसे तो कोरोना महामारी के कारण लगातार 74 दिनों से जारी लाॅकडाउन की वजय से पूरा देश प्रभावित हुआ है किन्तु इससे सबसे ज्यादा बुरी तरह से देश के करोड़ों गरीब व प्रवासी श्रमिकों का परिवारत्रस्त हुआ है। अचानक बेरोजगारी की मार के कारण उनका जीवन पीड़ा असहनीय होने के कारण ही उन्हें जैसे-तैसे अति-कष्ट सह करके अपने मूल राज्य लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा है। लेकिन केन्द्र व राज्य सरकारें उनके जीने के लिए अभी तक भी कोई ठोस व सार्थक उपाय नहीं कर पायीं हैं। इससे समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। सरकार जरूर गंभीरतपूर्वक विचार करे।
इतना ही नहीं बल्कि लाॅकडाउन के कारण पूरे देश भर में खासकर यू.पी. आदि राज्यों में छोटे-मझौले उद्योग-धंधे काफी हद तकबन्द हो गए हैं व वहाँ काम करने वाले लोग बेरोजगार हो गये हैं। यूपी के गाजियाबाद, कन्नौज आदि में भी लगातार यही सब देखने में मिल रहा है। इनकी तंगी व बदहाली को दूर करने के सम्बंध में केन्द्र व यू.पी. सरकार द्वारा योजनायें/घोषणायेंआदि तो बहुत की गई है, लेकिन इसके अनुसार इन बन्द पड़े उद्योग-धंधो की मदद की गई होती तो ये अब तक बन्द क्यों पडे़ हुए होते। इन्हें अब तक खुल जाना चाहिए था। इस कारण यू.पी. व अन्य राज्यों में भी करोड़ों लोग रोजी-रोटी की मजबूरी में तड़प रहे हैं, जिसे काफी गंभीरता से लेकर केन्द्र व राज्य सरकारों को इन्हें यथाशीघ्र दूर करना चाहिए।
 सुश्री मायावती  ने कहा कि केन्द्र सरकार नये उद्योग-धंधे शुरू कराने की बात कर रही है, यह अच्छी बात है व इसका स्वागत है परन्तु उसमें समय लगेगा। इसलिए वर्तमान समस्या का फौरी समाधान तभी निकल सकता है जब दिनंाक 24 मार्च 2020 से बन्द देशव्यापी लाॅकडाउन के कारण बंद हुए तमाम उद्योग-धंधों को दोबारा फिर से चालू कराया जाएगा। मंै समझती हूँ कि जो उद्योग-धंधे व कारोबार पहले से स्थापितहैं, उन्हें ही चालू कराकर पटरी पर ला दिया जाए तो यह सरकार का बड़ा उपकार होगा।


 पंजाब सहित कई राज्यों द्वारा प्रवासी श्रमिकों/मजदूरों को वापस बुलाने की खबर का नोट लेते हुए सुश्री मायावती  ने कहा कि लाॅकडाउन के कारण जब श्रमिकों कोसैलरी नहीं मिलने के कारण इन्हें काफी लम्बे समय तक अनेकों प्रकार की दिक्कत-परेशानी झेलनी पड़ रही थी, वे जब भूखे मर रहे थे तब तो इन राज्य सरकारों ने इनका कुछ ख्याल नहीं किया जबकि यह उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी बनती थी। उस भीषण संकट के समय में अगर राज्य सरकारें उन्हें कुछ धन उपलब्ध करा देती या कुछ उधार ही उपलब्ध करा देती तो वे भूखे-प्यासे तड़पते लोग हजारों किलोमीटर दूर वापस अपने घर लौटने को क्यों मजबूर होते। और अब जब इन प्रवासी श्रमिकों के बिना काम नहीं चल पा रहा है तो इन्हें वापस बुलाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रवासी श्रमिकों के साथ इस तरह का खिलवाड़ व उनके जीवन सम्मान- स्वाभिमान के साथ मजाक क्यों किया जा रहा है। वे लोग गरीब जरूर हैं, मगर इन्सान तो हैं।


मायावती  ने कहा ,ऐसे में केन्द्र व राज्य सरकारों की खास जिम्मेदारी बनती है कि वे इन गरीब श्रमिकों/मजदूरों व अन्य मेहनतकश लोगों के लिए इनके मूल राज्य में ही स्थानीय स्तर पर इनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था सुनिश्चित करे तो बेहतर होगा ताकि प्रवासी होने की पीड़ा इन्हें दोबारा नहीं झेलनी पडे़।
इस सम्बंध में बी.एस.पी. केन्द्र व राज्य सरकारों को सचेत भी करना चाहती है कि इनकी जिन्दगी के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिये। इनके लिए किये गये सभी वायदों को ईमानदारी व निष्ठा से पूरा करना चाहिये। ताकि इन्हें अन्ततः सड़क पर उतरने के लिए कभी मजबूर न होना पड़े, क्योंकि हर चीज की एक सीमा होती है। इनके दुःख-तकलीफ की भी सीमा है जिसको और न बढ़ने दें।इसके साथ ही देश के खासकर छोटे व मझोले किसान वर्ग भी वर्तमान में लाॅकडाउन के साथ-साथ आंधी, तूफान, बरसात व टिड्डियों की कुदरती मार से काफी ज्यादा दुःखी व परेशान है। उनका जीवन भी काफी त्रस्त है। उनके दुःख-दर्द को दूर करने व उनके हितों के सम्बंध मंे भी केन्द्र व राज्य सरकारों ने जो भी घोषणायें की हैं, योजनायें बनाई हैं, आर्थिकमदद आदि के वायदे किये हैं, उन्हें भी जमीनपर अमलीजामा पहनायें ताकि उन्हें थोड़ी राहत प्राप्त हो सके।
पूर्व  मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्र व खासकर यू.पी. सरकार काफी दयनीय हालत में जी रहे करोड़ों गरीबों, मजलूमों, प्रवासी श्रमिकों/मजदूरों व छोटे किसानों आदि के हितों के सम्बन्ध में ठोस कार्रवाई करने की चिन्ता करें ताकि तमामसरकारी घोषणायें/वायदे/योजनायें केवल हवा-हवाई, कागजी व खानापूर्ति वाली होकर ना रह जाएं।


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