बहुउद्देश्यीय प्रजातियों को बढ़ावा देने पर होगा किसानों की आय में सुधार
‘’कृषि वानिकी करने वाले किसानों को उद्योग से जोड़ना’’विषयक वेब-संगोष्ठी आयोजित
‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन को साकार करने में सक्षम घटकों को लेकर हुई विस्तृत चर्चा
प्रधानमंत्रीजी का ‘वोकल फॉर अवर लोकल’ नारा कृषि-वानिकी के लिए भी अति प्रासंगिक
उत्पादकता में सुधार का मूलाधार गुणवत्ताप्रद रोपण सामग्री, इससे किसानों की आय में सुधार
बहुउद्देश्यीय प्रजातियों को मिलें बढ़ावा, सिल्क बोर्ड ने भी दिया किसानों की मदद का आश्वासन
21 राज्यों में क्षेत्रवार कृषि-वानिकी मॉडल विकसित करने की योजना की जा रही है कार्यान्वित
नई दिल्ली। ‘’कृषि वानिकी करने वाले किसानों को उद्योग से जोड़ना’’ के संबंध में वेब-संगोष्ठी आयोजित की गई। कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग सचिव संजय अग्रवाल ने इसका उद्घाटन करते हुए किसानों की आय बढ़ाने के लिए किए गए उपायों तथा किसानों को अनेक नियम-कायदों के बंधनों से आजादी देने की जानकारी दी। संगोष्ठी में कहा गया कि प्रधानमंत्रीजी का ‘वोकल फॉर अवर लोकल’ नारा कृषि-वानिकी के लिए भी अति प्रासंगिक है। उत्पादकता में सुधार का मूलाधार गुणवत्ताप्रद रोपण सामग्री है, जिससे किसानों की आय में सुधार होगा। बहुउद्देश्यीय प्रजातियों को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया। संगोष्ठी में केंद्रीय सिल्क बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने किसानों की मदद का आश्वासन दिया।
वर्ष 2014 में राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति बनाने वाला भारत, विश्व का पहला देश है। इसके अनुसरण में वर्ष 2015 में कृषि-वानिकी उप-मिशन शुरू किया गया ताकि राज्यों को फसलों के साथ-साथ वृक्षारोपण करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा सके। आईसीएआर व आईसीएफआरई सहित अनुसंधान संस्थानों द्वारा कृषि जलवायुवीय क्षेत्रवार कृषि-वानिकी मॉडल विकसित किए गए हैं। यह योजना 21 राज्यों में कार्यान्वित की जा रही है। इसी तारतम्य में कृषि-वानिकी करने वाले किसानों को उद्योग से जोड़ने तथा सही प्रजातियों को चुनने में किसानों की सहायता करने के लिए राज्यों को सुग्राही बनाने के तौर-तरीकों पर चर्चा करने हेतु वेब-संगोष्ठी आयोजित की गई। विभाग के सचिव श्री संजय अग्रवाल ने इसका उद्घाटन करते हुए किसानों का कल्याण सुनिश्चित करने हेतु उनके लिए अधिकतम लाभ के वास्ते कृषि क्षेत्र में लाए गए सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अंतरराज्यीय व्यापार की बाधाओं को दूर करने तथा कृषि उपज की ई-व्यापार सुविधा के लिए कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश-2020 एवं 1.63 लाख करोड़ रूपए के परिव्यय पर भी फोकस किया, जिससे सही मायने में राष्ट्रीय मंडी की स्थापना होगी और किसानों को ऐसी मंडी को चुनने का विकल्प मिलेगा जहां वे अपने उत्पाद बेचना चाहते हैं।
उन्होंने किसानों के लिए अतिरिक्त आय, विशेषकर महिला स्व-सहायता समूहों के लिए आजीविका के माध्यम के रूप में पौधशालाओं का सृजन, हरे चारे, फलीदार प्रजातियों के रोपण द्वारा उर्वरकों की जरूरत में कमी होना, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन का पृथक्करण करने आदि जैसे बहु-उपयोगों पर भी प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का ‘वोकल फॉर अवर लोकल’ नारा कृषि-वानिकी के लिए भी अति प्रासंगिक है। कृषि-वानिकी कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं में आयात संबंधी निर्भरता कम करने के वास्ते उद्योग के लिए कच्ची सामग्री की आपूर्ति को बढ़ाने में योगदान दे सकती है। केवल इमारती लकड़ी की प्रजाति से जुड़ी कृषि-वानिकी की पूर्ववर्ती धारणा को किसानों व उद्योग जगत के नजरिए से पुन: देखने की जरूरत है। इमारती के वृक्षों की परिपक्वता की अवधि लंबी होती है, इसलिए किसानों को आय प्राप्त होने में भी देरी होती है, जबकि कई ऐसे बढ़ते क्षेत्र हैं जो किसानों के लिए शीघ्र आय सुनिश्चित करने के साथ-साथ उद्योग जगत की जरूरतों को भी पूरा करते हैं। औषधीय व सुगंधित पौधे, रेशम, लाख, कागज व लूब्दी, जैव ईंधन के वृक्षजनित तेल के बीज आदि इनमें शामिल हैं।
इस आयोजन की पहली श्रृंखला में वेब-संगोष्ठी के चार प्रमुख वक्ता थे। ये हैं- राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. जे.एल.एन. शास्त्री, भारतीय कागज विनिर्माण संघ के महासचिव श्री रोहित पंडित, आईटीसी लिमिटेड के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. एच.के.कुलकर्णी तथा केन्द्रीय सिल्क बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं सदस्य सचिव श्री रजित रंजन ओखादियार। वक्ताओं ने कहा कि औषधीय पौधों का प्रचार आत्मनिर्भर भारत योजना का एक मुख्य घटक है और वृक्ष आधारित व जैविक औषधीय उत्पाद के अभिसरण की कृषि मंत्रालय के साथ व्यापक संभावना है। कागज उद्योग को कच्ची सामग्री की आपूर्ति करने में आ रही बाधाओं से जुड़ी समस्याओं पर भी चर्चा की गई। उत्पादकता में सुधार करने का मूल आधार गुणवत्ताप्रद रोपण सामग्री है, जिससे किसानों की आय में भी सुधार होता है। यह प्रस्तुतीकरण संशोधित किस्मों की रोपण सामग्री के प्रतिरूप के महत्व को दर्शाता है जो उद्योग जगत की जरूरत के अनुकूल भी है।
केंद्रीय सिल्क बोर्ड ने सिल्क की परपोषी पादप की रेंज का रोपण करने वाले किसानों की सहायता करने का आश्वासन दिया जो औसतन 3-4 वर्षों में आय देना शुरू कर देंते हैं और इसलिए यह कृषि-वानिकी प्रणाली के लिए आदर्श है। निष्कर्षत: राज्यों को रोपण-पूर्व, रोपण और फसल कटाई से लेकर फसल के इसी क्रम में संविदा खेती को बढ़ावा देने के सुझाव दिए गए। मौजूदा व संभावना वाले दोनों उद्योग को धुरी के रूप में लिया जाना चाहिए और इसके इर्द-गिर्द ही गतिविधयां नियोजित की जानी चाहिए। बहुउद्देश्यीय प्रजातियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि यथाशीघ्र किसानों को परिश्रमिक मिलना शुरू हो। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन को साकार करने में सक्षम होगा।