नदी जोड़ो परियोजना समय के झंझावात में फंस कर रह गई
प्रयागराज
स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की भांति नदी जोड़ो परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना है।स्वर्णिम चतुर्भुज योजना तो उनकी कल्पनानुसार मूर्त रूप ले चुकी है और समग्र राष्ट्र उस योजना का लाभ प्राप्त कर रहा है किंतु नदी जोड़ो परियोजना समय के झंझावात में फंस कर रह गई है। यद्यपि नदी जोड़ो परियोजना की कल्पना वर्ष 1858 में सर्वप्रथम मद्रास रेजीडेंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर काटोन ने की थी, जिसकी रूपरेखा कैप्टन दस्तूर ने प्रस्तुत की थी, किंतु यह परियोजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सन 1960 में तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा और सिंचाई राज्यमंत्री के एल राव ने गंगा और कावेरी नदियों को परस्पर जोड़कर उत्तर भारत और दक्षिण भारत में समय-समय पर वर्षा की अधिकता एवं कमी को दृष्टि में रखकर उसमें उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निजात दिलाने हेतु परस्पर नदी जोड़ने का विचार प्रस्तुत किया था, किंतु तत्कालीन सरकार के मध्य नदी जोड़ो परियोजना के संबंध में मतभेद से इसके पक्ष में निर्णय न लिए जाने के कारण राव की यह योजना भी ठंडे बस्ते में ही रह गई और मूर्त रूप नहीं ले सकी। वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी बाजपेई ने देश में व्याप्त जल समस्या के समाधान हेतु नदी जोड़ो परियोजना का प्रस्ताव प्रस्तुत कर उसे मूर्त रूप देने का प्रयास किया था, जिसके माध्यम से उत्तर एवं दक्षिण भारत की अनेकानेक नदियों को परस्पर नहरों के माध्यम से जोड़कर उनमें एक दूसरे का पानी स्थानांतरित कर समय-समय पर देश के समक्ष उपस्थित होने वाली बाढ़ एवं सूखे की समस्या के निदान के रूप में प्रस्तुत किया था। देश में एक साथ ही अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि तथा बाढ़ एवं सूखे की समस्या आए दिन मुंह बाए खड़ी रहती है । एक ही समय में देश का एक हिस्सा अतिवृष्टि से प्रभावित होकर बाढ़ग्रस्त हो जाता है तो वहीं दूसरी ओर देश का दूसरा हिस्सा अनावृष्टि के कारण गंभीर सूखे की चपेट में आ जाता है ।प्रतिवर्ष कहीं ना कहीं इस स्थिति का सामना करना पड़ता है जिसके कारण अपार जन धन की हानि होती है,जिसका स्थाई निदान खोज पाना असंभव सा है। नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से इस समस्या का निदान प्राप्त किया जा सकता है। बाढ़ के दिनों में एक नदी का जल नहर के माध्यम से दूसरे नदी में पहुंचा कर बाढ़ की समस्या का समाधान खोजा जा सकता है । बाढ़ का पानी जो बहकर समुद्र में जाकर व्यर्थ हो जाता है, उसको समुद्र में जाने से रोककर उसका सदुपयोग किया जा सकता है ।इस अतिरिक्त पानी को नहरों के माध्यम से एक नदी से दूसरी नदी में पहुंचा कर जहां एक और बाढ़ की समस्या से बचा जा सकता है वहीं दूसरी ओर सूखे की स्थिति में संबंधित क्षेत्र को जल पहुंचा कर वहां सूखे का भी समाधान किया जा सकता है, जिसके लिए तत्कालीन अटल सरकार ने एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की थी, जिसके अंतर्गत 30 नदियों को आपस में जोड़ने का विचार किया गया था इसके लिए 15000 किलोमीटर लंबी नहरों का निर्माण किया जाना था जिसके द्वारा अतिवृष्टि एवं बाढ़ के समय का अतिरिक्त 174 घन किलोमीटर पानी एकत्रित किया जा जाता। राष्ट्रीय नदी जोड़ो प्रोजेक्ट में कुल 30लिंक बनाने की योजना है जिससे 37 नदियां जुड़ी होंगी। इस प्रस्तावित 560000 करोड़ की अनुमानित लागत की नदी परियोजना को दो हिस्सों में बांट कर मूर्त रूप दिया जाएगा जिनमें से प्रथम होगा प्रायद्वीप स्थित नदियों का जोड़ना और दूसरा हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना। प्रायद्वीप भाग में 16 लिंक हैं जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है इसमें महानदी और गोदावरी को पेन्नार कृष्णा वैगई और कावेरी से जोड़ा जाएगा पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा इससे जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है केरल और कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ दी जाएगी ।हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल संग्रहण की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान है ताकि वर्षा जल इकट्ठा हो और उत्तर प्रदेश बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ का सामना ना करना पड़े। जलाशयों से बिजली उत्पादित की जाएगी। इस क्षेत्र में गंडक साबरमती शारदा फरक्का स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा। किंतु यह प्रस्तावित योजना अभी तक मूर्त रूप नहीं ले सकी और केंद्र में सत्ता परिवर्तन हो गया जिसके कारणवर्ष 2004 में एनडीए सरकार जाते ही यह परियोजना भी ठंडे बस्ते में चली गई। तत्पश्चात एक जनहित याचिका में वर्ष 2012 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाड़िया और स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने कहा कि यह कार्यक्रम राष्ट्रीय हित में है जिसे पूरा किया जाना चाहिए उन्होंने नदियों को जोड़ने के लिए एक विशेष कमेटी बनाने का भी आदेश दिया किंतु कांग्रेस की सरकार में यह योजना ठंडे बस्ते में ही पड़ी रही उस पर कोई विचार नहीं किया गया। वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार की स्थापना के पश्चात जल संसाधन नदी विकास और गंगा सफाई मंत्रालय के अंतर्गत एक विशेष समिति का गठन कर इस दिशा में कार्य करने का की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
नदियों को जोड़ने की परियोजना देश की एक बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसके माध्यम से देश की जल समस्या का निदान खोजने का प्रयास किया गया है। वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार की शपथ ग्रहण के साथ हुई इस योजना के मूर्त रूप लेने तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के सपनों के साकार होने की दिशा में कार्य प्रारंभ हुए थे जिसके परिणाम स्वरूप मध्यप्रदेश में नर्मदा शिप्रा को आपस में जोड़ दिया गया था जिससे गर्मी में जल विहीन हो जाने वाली शिप्रा भी पानी से लबालब भरी रहती है तथा उसके जलभराव क्षेत्र को वर्ष पर्यंत पानी मिलता रहता है इसी प्रकार केन बेतवा नदी को जोड़ने का कार्य चल रहा है और नदी जोड़ो परियोजना के प्रथम प्रोजेक्ट के रूप में स्वीकार किया गया है। केन बेतवा नदी परियोजना को प्रारंभ करते समय इस योजना पर 123 अरब डालर लागत आने का अनुमान लगाया गया था लेकिन अभी तक यह परियोजना पूरी नहीं हो सकती है और ना ही जल्द इसके पूरे होने की कोई सम्भावना दिख रही है। समय और लागत निरंतर बढ़ रहा है और आजइसकी लागत अनुमानित लागत से कई गुना बढ़ चुकी है तथा निकट भविष्य में इसके पूरे होने की संभावना भी नहीं दिख रही है ।केन बेतवा परियोजना की ही भांति अन्य नदी परियोजनाओं का भी काफी समय से पूर्ण न होना तथा उनकी लागत का निरंतर बढ़ते जाना ऐसी परियोजनाओं की सार्थकता के समक्ष प्रश्नचिन्ह बनकर खड़ा हो जाता है। यदि केन बेतवा परियोजना समय पूर्व पूर्ण होती,इससे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र आए दिन सूखे की मार का शिकार न होता और वह आवश्यकतानुसार जलापूरित होता तथा इस योजना के परिणाम से प्रभावित होकर अन्य योजनाओं का भी कार्य द्रुतगति से पूर्ण होता तथा अपना परिणाम देता किंतु दुर्भाग्य से अभी तक कोई भी योजना मूर्त रूप धारण नहीं कर सकी है अन्य नदियों पर भी येन केन प्रकारेण कार्य मंथर गति से चल रहा है। अटल जी की कल्पना के अनुसार यदि देश की नदियों पर स्थित जुड़ जाती हैं तू जहां एक और बाढ़ की विनाश लीला से देश को निजात मिलेगी वहीं दूसरी ओर सूखे की समस्या तथा पेयजल की समस्या का भी समाधान प्राप्त होगा नदियों के परस्पर दूर जाने से वर्ष 2050 तक 16 करोड हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई होने लगेगी जबकि वर्तमान में सिंचाई के सभी संसाधनों व तकनीकों का उपयोग करने के बाद भी 14 करोड़ जीतकर भूमि में ही सिंचाई संभव हो पा रही है कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टेयर भूमि में से 546 हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों द्वारा प्रतिवर्ष सीधी जाती हैं यदि हमें जुड़ जाती हैं तो सिंचित भूमि का क्षेत्रफल काफी अधिक बढ़ जाएगा। कोई योजना पूर्णता पर नहीं पहुंच रहीहै और अब न जाने क्यों अचानक 2019 में इस योजना में ग्रहण लग गया है और बिना कोई कारण दिए सरकार ने अपने बजट में इस मद में ₹100000 की व्यवस्था की है यह आश्चर्य की बात है कि करोड़ों रुपए के बजट से संचालित होने वाली है परियोजना मूर्त रूप लेने के पहले पहले ही सरकारी बजट के अभाव का शिकार हो गई सरकार से जहां यह अपेक्षा थी कि वह अपने बजट में इस परियोजना हेतु पर्याप्त बजट की व्यवस्था कर परियोजना को पूर्ण करने का कार्य करेगी वही सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट में नगण्य सी व्यवस्था कर मात्र औपचारिकता निभाई गई है ।आवंटित बजट का इस परियोजना को मूर्त रूप देने में कोई योगदान नहीं हो सकता है सरकार द्वारा आवंटित बजट से यह प्रकट हो रहा है कि अब यह योजना सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है और उसकी दृष्टि में इस योजना का कोई महत्व नहीं है। सरकार द्वारा बजट में इस योजना को महत्व न दिए जाने के बावजूद सरकार की ओर से किसी प्रकार का विचार भी इस संदर्भ में प्रस्तुत नहीं किया गयाकि वह इस योजना की सार्थकता उपयोगिता एवं महत्व का पुनर्परीक्षण करा कर प्रभावी करेगी या अनुपयुक्त पाए जाने पर इस पर विराम लगाएगी । इस संदर्भ में सरकार की मंशा अभी तक स्पष्ट नहीं है जिससे यह स्पष्ट नहीं हो रहा कि सरकार इस परियोजना को पूर्ण करने की दिशा में कोई कार्य करेगी या इस पर विराम लगाएगी ।यद्यपि नदी जोड़ो परियोजना से देश की अनेक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता दिख रहा है किंतु कुछ लोगों का का यह भी मानना है की विभिन्न पारिस्थितिकी मैं प्रवाहित हो रही नदियों को परस्पर जोड़ देने से उसका दुष्प्रभाव भी सामने आएगा ।नदियों में रहे रहे जल जीवो के जीवन पर भी उसका असर पड़ेगा तथा उनका जीवन उससे प्रभावित होगा।
नदियों के परस्पर जुड़ जाने से देश को बाढ़ एवं सूखे की समस्या से निजात मिल सकती है क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर बाढ़ ग्रस्त नदी का जल सूखा प्रभावित स्थल के नदी को भेज कर बाढ़ के दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है ।गंगा और ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ से निजात मिल सकती है। समय पर आवश्यकतानुसार हर क्षेत्र को जल प्राप्त हो जाने से देश का विकास चतुर्दिक होगा । अनेकानेक समस्याओं का समाधान अपने आप प्राप्त होगा । पर्याप्त पानी उपलब्ध होने सेअधिकाधिक फसल उत्पादन के साथ ही टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, नव परिवहन भी संभव होगा। जिससे बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान हो सकेगा। अनेक जलाशय बन जाने से सस्ती बिजली का उत्पादन सम्भव हो सकेगा। पेयजल से लेकर सिंचाई की समस्या का सहज रूप में समाधान प्राप्त होगा। कुछ भी हो, नदी जोड़ो परियोजना के समक्ष चुनौती के रूप में चाहे जैसी समस्याएं एवं परिस्थितियां हों, जल समस्या के निदान के लिए नदी जोड़ो परियोजना को अंततः स्वीकार करना ही होगा। नदी जोड़ो परियोजना को स्वीकार कर उसको साकार रूप देने से संभव है कुछ दुष्परिणाम सामने आए किंतु राष्ट्र के समक्ष उपस्थित हो रहा जल संकट तथा निरंतर गिर रहा भूगर्भ जल स्तर आने वाले समय में देश के समक्ष उपस्थित होने वाले जल संकट का विकराल स्वरूप सामने खड़ा कर रहा है इस संकट का एकमात्र निदान भूगर्भ के जल स्तर को बढ़ाकर ही प्राप्त किया जा सकता है और यह भूगर्भ जल स्तर उसी स्थिति में बढ़ सकता है जब प्रत्येक क्षेत्र में पानी सहज रूप से उपलब्ध हो वर्षा जल व्यर्थ में वह कर नदियों के माध्यम से समुद्र में ना चला जाए, अपितु नव्या नदियां वर्षा जल को अपने साथ लेकर देश के कोने कोने में जहां उसकी आवश्यकता है वहां उसे पहुंचाएं तथा जल की अधिकता से उत्पन्न होने वाली विभीषिका से मुक्ति दिलाने हेतु वहां विद्यमान जल अपरिमित जल राशि को ठोकर जल विहीन क्षेत्र में पहुंचाना सुनिश्चित करें जिससे आवश्यकतानुसार आवश्यकतानुसार समय-समय पर हर क्षेत्र को अपेक्षित जल प्राप्त होगा जल उपलब्ध रहेगा तथा भूगर्भ के जल का असीमित दोहन नहीं होगा परिणाम स्वरूप धीरे धीरे भूगर्भ का जल स्तर अपने आप बढ़ेगा तथा देश के समक्ष उत्पन्न जल संकट का समाधान सहज रूप में प्राप्त होगा वस्तुतः जल संकट चाहे वह पेयजल के रूप में हो असंभव होगाया सिंचाई के साधन के रूप में सब का समाधान नदी जोड़ो परियोजना के पास ही निहित है नदी जोड़ो परियोजना को मूर्त रूप देकर कालांतर में जल समस्या का समाधान प्राप्त किया जा सकता है अन्यथा स्थिति में निरंतर दूर जा रहा भूगर्भ का जलस्तर आने वाले समय में विकराल रूप धारण कर राष्ट्र के समक्ष उपस्थित होगा जिसका समाधान प्राप्त कर पाना असंभव होगा। नदी जोड़ो परियोजना को मूर्त रूप देकर जहां एक और राष्ट्र के समक्ष विद्यमान जल समस्या का निदान प्राप्त होगा वहीं दूसरी ओर वह अजातशत्रु युगपुरुष पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई की कल्पना को साकार रूप देकर उनके अधूरे काम को पूरा करते हुए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी