देश में पूंजी का संकट क्यों?: अग्रवाल

 


शास्त्रीय विचारक रोशनलाल अग्रवाल की केंद्र सरकार को चेतावनी 


नई दिल्ली - भारत में चरमराती और दम तोड़ती  अर्थ वयवस्था के कारण बढ़ते भ्रष्टाचार अपराध पर चिंतित है आर्थिक न्याय के संचालक एवं आर्थिक मामले के विश्लेषक एवं विचारक ने सरकार को चेताया है कि
देश की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए सरकार केवल 10 हजार सबसे संपन्न धनपतियों की संपत्ति पर संपत्तिकर (wealth tax) लगा कर 150 लाख करोड़ रु बहुत आसानी से प्राप्त कर सकती है।


लेकिन इतनी विशाल राशि की 10% भी वह कभी भी आयकर से पूरे देश में भी नहीं प्राप्त कर सकती।


अब उसे यह बात अच्छी तरह समझ में आ जानी चाहिए कि उसने संपत्तिकर हटाकर भयानक भूल की है और पूंजीपतियों को बेलगाम भी छोड़ दिया है। उनकी यह उदंडता सरकार का ही मुंह चिढ़ा रही है।


अगर पूंजीपति अपनी पूंजी का निवेश नहीं करेंगे तो सरकार को तो आयकर नहीं प्राप्त होगा लेकिन संपत्तिकर तो हर हालत में लगेगा चाहे कोई उससे आय प्राप्त करें या न करे। इसलिए धन पतियों ने अपनी संपत्तियों का निवेश न करके सरकार को ब्लैकमेल और देश की जनता को परेशान करने का षडयंत्रपूर्ण रास्ता अपनाया है और सरकार बेबस बनी हुई है।


इसलिए यदि सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह गतिशील करना चाहती है तो तत्काल प्रभाव से एक व्यक्ति की बाजार मूल्य के आधार पर एक करोड़ रुपए की संपत्ति की छूट देकर उस से अधिक की संपत्ति पर मात्र 3% वार्षिक कर लगा दे तो उसकी समस्या आसानी से हल हो जाएगी।


यदि सरकार एक व्यक्ति को एक करोड़ रुपए तक की संपत्ति रखने की कर मुक्त छूट देती है तो देश के 99% लोगों पर कोई भी संपत्ति कर नहीं लगेगा और वह सभी पूरी तरह भयमुक्त रहेंगे और अधिक से अधिक देश के 1% अति संपन्न लोगों पर संपत्ति कर लगाना होगा।


इसका सबसे बड़ा लाभ तो यही होगा कि कोई भी अति संपन्न व्यक्ति अपने धन को निष्क्रिय नहीं रख सकेगा और उसे हर हालत में निवेश करना होगा और निवेश नहीं करने पर उसकी सारी संपत्ति कुछ ही सालों में उसके हाथ से निकल जाएगी।


और जब कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति को निष्क्रिय नहीं रख सकेगा तो देश में पूंजी की कमी का संकट समाप्त हो जाएगा और उससे बेरोजगारी की समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी।


मेरी समझ में सारे अर्थशास्त्री सरकार को धोखा दे रहे हैं और सरकार को दिग्भ्रमित कर रहे हैं जो उसको समझ में भी नहीं आ रहा है।


कोई भी समझदार व्यक्ति इस बात को आसानी से समझ सकता है कि यदि अमीर लोग अपनी सारी संपत्ति को निवेश करना बंद कर दें तो पूंजी के अभाव में सारा देश गरीबी और बेरोजगारी से भूखा मर जाएगा लेकिन निवेश नहीं करने पर अमीरों को कोई आयकर भी नहीं देना होगा।


सरकार में बैठे लोगों को आयकर और संपत्ति कर का यह मूलभूत अंतर समझना चाहिए और उसे आयकर को हटाकर तुरंत संपत्ति कर लगाना चाहिए। इससे देश की अर्थव्यवस्था घोड़े से भी अधिक गति से दौड़ने लगेगी और देश में पूंजी का कभी भी अभाव पैदा नहीं होगा।


मेरा मानना है कि दुनिया के सारे अर्थशास्त्री अमीरों के दलाल बनकर पूरे समाज को धोखा दे रहे हैं और मेरी समझ में यह अपराध है सरकार को तत्कालीन की डिग्रियां रद्द कर देनी चाहिए।


यदि कोई भी अर्थशास्त्री इस विषय पर तर्क करने का इच्छुक हो तो मैं उसे खुली चुनौती के साथ सामने आने को ललकार ता हूं और सरकार को सलाह देता हूं कि वह बिना कोई देर किए आयकर और जीएसटी को हटाकर केवल संपत्ति कर लगा दे।


मैं सरकार को यह चेतावनी भी देना चाहता हूं कि यदि उसने मेरी बात नहीं मानी तो देश की अर्थव्यवस्था उसके हाथ से निकल जाएगी और इसके भारी दुष्परिणामों की कल्पना सरकार और समाज के सभी लोग आसानी से कर सकते हैं।


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