अज्ञात स्वतंत्रता सेनानी : डॉक्टर हेडगेवार – 10
संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार तथा उनके अंतरंग सहयोगी अप्पाजी जोशी 1928 तक मध्य प्रांत कांग्रेस की प्रांतीय समिति के वरिष्ठ सदस्य के नाते सक्रिय रहे. कांग्रेस की इन बैठकों एवं कार्यक्रमों के आयोजन में डॉक्टर जी का पूरा साथ रहता था. सभी महत्वपूर्ण प्रस्ताव इन्हीं के द्वारा तैयार किए जाते थे. इसी समय अंग्रेज सरकार ने भारतीय फौज की कुछ टुकड़ियों को चीन में भेजने का फैसला किया. नागपुर में कांग्रेस की एक जनसभा में डॉक्टर जी द्वारा रखे गए, एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास किया गया, जिसमें कहा गया था ''यह सभा सभी भारतीय नागरिकों से अपील करती है कि सभी तरह के उचित तरीकों यथा प्रदर्शनों, प्रचार, विरोध प्रस्तावों के जरिये सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों का सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का विरोध करें''.
साईमन कमीशन का विरोध / क्रांतिकारियों का साथ
इन्हीं दिनों 1928 में इंग्लैंड की महारानी की ओर से एक कमिशन अनेक सुधारों का बंडल लेकर भारत में आया. सर साइमन की अध्यक्षता में गठित इस कमीशन का पूरे भारत में विरोध किया गया. कहा जाता है कि साइमन कमीशन के विरोध में हुआ यह आंदोलन अब तक के आंदोलनों में सबसे बड़ा था. मध्य प्रांत तथा निकटवर्ती इलाकों में आंदोलन के लिए होने वाले जनजागरण तथा प्रचार के सभी सूत्र डॉक्टर हेडगेवार के हाथों में सौंप दिए. पूरे देश में हड़ताल और विरोध प्रदर्शन करने का यह निर्णय कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में लिया गया था. डॉक्टर हेडगेवार ने इस आंदोलन को सफल करने में अपनी सारी शक्ति झोंक दी. संघ के स्वयंसेवकों एवं समर्थकों के एक बड़े वर्ग ने साइमन कमीशन का विरोध किया. स्वयंसेवक संस्थागत भावना से ऊपर उठकर कांगेस के तत्वाधान में इस आंदोलन में भाग लेते रहे.
इसी तरह लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपतराय के नेतृत्व में हुआ. साइमन 'कमीशन वापस जाओ' और 'विदेशी सरकार मुर्दाबाद' के नारों से आकाश गूंज उठा. लाहौर रेलवे स्टेशन के बाहर प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठियां भांजी गई. इस लाठी प्रहार से लाला लाजपतराय बुरी तरह से घायल हो गए. कुछ दिन के पश्चात उनकी मृत्यु हो गई. अपने नेता की इस शहादत का बदला लेने के लिए सरदार भगतसिंह और राजगुरु ने लाठियां बरसाने वाले पुलिस अफसर सांडर्स को लाहौर की मॉलरोड पर दिनदहाड़े गोलियों से उड़ा दिया. दोनों क्रांतिकारी फरार होकर लाहौर से बाहर निकल गए. राजगुरु नागपुर आकर डॉक्टर हेडगेवार से मिले. नागपुर के एक हाई स्कूल भौंसले वेदशाला के विद्यार्थी रहते हुए राजगुरु का डॉक्टर हेडगेवार से घनिष्ठ परिचय था. अतः डॉक्टर जी ने अपने एक सहयोगी कार्यकर्ता भय्याजी दाणी के फार्म हाउस में राजगुरु के ठहरने और भोजन आदि की व्यवस्था कर दी. राजगुरु को समझा दिया कि वह पूना में अपने गांव कभी न जाएं क्योंकि वहां पर उनके गिरफ्तार होने का पूरा खतरा है.
इस चेतावनी की ओर राजगुरु ने ध्यान नहीं दिया और अपने घर पूना चले गए. डॉक्टर जी की आशंका सत्य साबित हुई. राजगुरु गिरफ्तार कर लिए गए, उन पर मुकद्दमा चला और सरदार भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ उनको मौत की सजा मिली, तीनों को फांसी पर लटका दिया गया. इन तीनों महान देशभक्त क्रांतिकारियों की शहादत पर डॉक्टर जी को दुःख तो हुआ, परन्तु आश्चर्य नहीं हुआ. उन्होंने अपने सहयोगियों से इतना तो जरूर कहा कि यह बलिदान बेकार नहीं जाएगा. उल्लेखनीय है कि संघ कार्य में पूरी तन्मयता के साथ व्यस्त हो जाने के बाद भी डॉक्टर जी ने सशस्त्र क्रांति के ध्वजवाहकों के साथ हमदर्दी और सम्पर्क बनाए रखा और यदाकदा इन देशभक्तों की सहायता करते रहे.
संघ शाखाओ में मनाया गया स्वतंत्रता दिवस
यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि ए.ओ. ह्यूम द्वारा गठित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने जन्मकाल1885 से लेकर 1929 तक कभी भी भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की बात नहीं की. कांग्रेस 'स्वराज्य' पर ही टिकी रही, वह भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंतर्गत 'उपनिवेश' के रूप में. परन्तु दिसंबर 1929 में लाहौर में सम्पन्न कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. डॉक्टर हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता के इस प्रस्ताव का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया. 26 जनवरी 1930 को देश के प्रत्येक प्रांत में स्वतंत्रता दिवस मनाने वाले नेहरू के इस आदेश पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए समस्त देश में विशेषतया संघ की शाखाओं पर स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्देश दिया.
कांग्रेस तथा संघ दोनों के द्वारा देशभर में स्वतंत्रता दिवस आयोजित करने का यह निर्णय एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन गया. डॉक्टर हेडगेवार ने सभी संघ शाखाओं के नाम एक परिपत्र भेजा, जिसमें लिखा था ''इस वर्ष कांग्रेस ने स्वाधीनता को अपना लक्ष्य निश्चित करके रविवार 26 जनवरी 1930 को सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाए ऐसा घोषित किया है. इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सभी शाखाएं इस दिन सायंकाल को 6 बजे अपने-अपने संघ स्थानों पर सभा आयोजित करके इस आदेश का पालन करें. भाषण के रूप में सभी को स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ और ध्येय क्या है, ये स्पष्ट करें तथा कांग्रेस ने स्वतंत्रता के ध्येय को स्वीकार किया है. इसलिए कांग्रेस का अभिनंदन भी करें''.
उपरोक्त आदेश मिलते ही सभी शाखाओं के अधिकारियों ने विभिन्न कार्यक्रमों की रचना की. 26जनवरी 1930 को इन कार्यक्रमों में भगवा ध्वज की वंदना करने के बाद राष्टभक्ति पूर्ण गीतों के साथ पथ संचलन भी किए गए. प्रत्येक शाखा में मनाए गए स्वतंत्रता दिवस पर पूर्ण गणवेशधारी स्वयंसेवकों के साथ गणमान्य नागरिकों की सभाएं की गईं. इनमें दिए गए भाषणों के माध्यम से स्वाधीनता प्राप्ति तक संघर्षरत रहने की प्रतिज्ञा भी की गई.
कई हिन्दू संगठन संघ में विलीन
स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करने के साथ अपने हिन्दू संगठन के कार्य को भी करते रहने की इस नीति के बहुत सुखद परिणाम आने लगे. कर्तव्यनिष्ठ, देशभक्त और अनुशासित युवा स्वयंसेवक शाखाओं में तैयार होकर किसी भी संस्था द्वारा संचालित स्वतंत्रता आंदोलन में अपने संगठन के नाम को पीछे करके देशभक्त नागरिक के नाते प्रत्येक सत्याग्रह में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे. उपरोक्त संदर्भ को समझने हेतु एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा. अकोला (महाराष्ट्र) में हिन्दू युवकों का एक 'अखिल महाराष्ट्र तरुण हिन्दू अधिवेशन' सम्पन्न हुआ. हिन्दू समाज के पुनरोत्थान के उद्देश्य से आयोजित इस सम्मेलन को मध्य प्रांत के कई हिन्दू नेताओं का आर्शीवाद प्राप्त हुआ. डॉक्टर जी भी अपने कुछ संघ अधिकारियों के साथ वहां पहुंचे.
अधिवेशन के नेताओं लोकनायक शिवाजीराव पटवर्धन और मसूरकर महाराज इत्यादि से हुए अपने विचार विमर्श में डॉक्टर जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा, कार्यपद्धति और उद्देश्य की पूरी जानकारी दी. डॉक्टर जी ने यह भी बताया कि सभी लोग अपने-अपने संगठन में काम करते हुए भी संघ के स्वयंसेवक बनकर शाखाओं में प्रशिक्षण ले सकते हैं. इसी तरह सभी स्वयंसेवकों को स्वतंत्रता आंदोलन के किसी भी मार्ग पर चलने की अनुमति है. तरुण हिन्दू अधिवेशन के नेताओं के साथ डॉक्टर जी के आत्मीय सम्बन्धों के अनेक दूरगामी परिणाम निकले.
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले अनेक युवक संघ की शाखाओं में आने लगे. कई नेताओं को डॉक्टर जी ने संघ के कार्यक्रम का अध्यक्ष बनाया. इसी हिन्दू अधिवेशन के एक वरिष्ठ नेता पांचलेगांवकर महाराज अपनी एक संस्था मुक्तेश्वर दल चलाते थे. संघ के कार्य और उद्देश्य से प्रभावित होकर उन्होंने अपने इस दल को संघ में विलीन कर लिया. डॉक्टर जी के प्रभावशाली तथा व्यवहार कुशल नेतृत्व को देखकर मध्य प्रांत की अनेक छोटी-मोटी संस्थाओं के सदस्य विशेषतया तरुण, संघ के स्वयंसेवक बन गए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं के विस्तार, खासतौर पर युवकों में उत्तरोत्तर बढ़ रहे आकर्षण से अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी न केवल परेशान ही हुए, अपितु उन्होंने डॉक्टर हेडगेवार और संघ की गतिविधियों की रिपोर्ट भी सरकार के पास भेजनी शुरु कर दी. इन रिपोर्टों में कहा गया था कि डॉक्टर हेडगेवार एक उभर रहे हिन्दू नेता हैं और संघ के स्वयंसेवक पूरी निष्ठा के साथ स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग ले रहे हैं.
.......................शेष कल.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा स्तंभकार है )