*सरकारी व जातिवादी हिन्दूवादी दलितों और पिछडोें को हिन्दुत्व से दूर कर रहे हैं *


 


 *हिन्दुत्व बचा और सुरक्षित है तो दलितों व पिछडों की बुनियाद पर* 

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 *आचार्य विष्णु हरि सरस्वती* 

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मेरे पास बहुत दिनों से यह खबर आ रही है कि पिछडो और दलितों को हिन्दुत्व से खदेड़ने और उन्हें हिन्दुत्व से दूर भेजने के लिए सरकारी हिन्दूवादी सक्रिय है, आक्रामक हैं और अपमानजनक अभियान चला रखे हैं। आज कोई दलित या पिछडे वर्ग के लोग हिन्दुत्व छोड़ रहे हैं उसके पीछे भी ऐसे ही कारण है। सरकारी हिन्दूवादी जान बुझ कर दलितों और पिछड़ों को मुस्लिम या फिर ईसाई बनने के लिए बाध्य कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर जातिवाद की सर्वश्रेष्ठता देखी जा सकती है। तथाकथित हिन्दूवादी कमजोर और निचली जातियों को सरेआम अपमानित करते हैं और अपनी जाति की यूनियनबाजी चलाते हैं।

          मैं खुद इस विषय पर बहुत सालों से शोध कर रहा हूं। मेरे पास इस तरह की जो खबरें आ रही हैं वे सभी खबरें एकदम सही हैं, इसे खारिज करना मुश्किल है। मैंने यह महसूस किया है कि सरकारी हिन्दुत्व वादी संगठनों से जुडे लोग घोर जातिवादी हैं और उनमें अपनी जाति को लेकर सर्वश्रेष्ठता का भाव होता है। मेरे पास एक ऐसा प्रसग आया था जिसमें एक सरकारी हिन्दूवादी संगठन के सरगना से पूछ लिया कि हमारे सगठन में सभी विशेष पदों और जिम्मेदारियों पर एक ही जाति का कब्जा क्यों हैं, उसने नाम और उन सभी की जाति बतायी थी। सरकारी हिन्दूवादी संगठन के सरगना का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचा, लेकिन संयम दिखायी और कुछ तथ्यहीन बातों पर लीपापोती करने का काम किया। बाद में प्रश्न पूछने वाले युवक की उस सरकारी हिन्दूवादी संगठन से दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेक दिया गया। 

          सरकारी हिन्दूवादी संगठनों का सर्वे कर लीजिये। शोध कर लीजिये। सरगनाओं सहित छत्रपों की जाति जान लीजिये। बहुत निराशा होगी इनमे अधिकतर एक ही जाति के मिलेंगे। सरगना सहित अन्य क्षत्रप अपने भाषणों में हिन्दुत्व की बात करते हैं और आदर्श की बात करते हैं पर उनका जीवन पूरी तरह से अपनी जाति की यूनियनबाजी की तरह होता है। एक प्रसंग कानपुर का है। कभी समाजवादी पार्टी का बहुत बडा नेता सरकारी पार्टी में ज्वाइन करता है, बडे स्तर पर निमंत्रण मिलने पर पहुंचता है। उसे सरकारी हिन्दूवादी संगठन से जुडने के लिए कहा जाता है। जुड़ता है और संगठन पर लाखों रूपये की बरसात करता है। पर जब वह संकट में आता है तब उसे मदद नहीं मिलती है। वह नेता कहता है कि मुझे जाति की वजह से मदद नहीं मिली, जबकि सरकारी हिन्दू संगठन का वह व्यक्ति अपनी जाति की भलाई और पैरबी मेरे सामने करता था पर मेरे लिए उसके शब्द थे कि राजनीति और पैरबी मेरे पद व गरिमा के खिलाफ है।

       समरसता को तोडकर हिन्दुत्व की रक्षा नहीं हो सकती है। सिर्फ बडी जातियों की गोलबंदी से हिन्दुत्व की रक्षा नहीं हो सकती है। गुजरात दंगे को देख लीजिये। गुजरात दंगे में विधर्मियों से लड़ने वाले ब्राम्हण और क्षत्रिय तथा वैश्य नहीं थे। फिर लड़ा कौन। विधर्मियों से लड़ने वाले अधिकर लोग दलित और आदिवासी थे। पश्चिम उत्तर प्रदेश में विधर्मियों से लडने वाले खटीक और अन्य निचली जातियां हैं। जिन-जिन जगहों पर दंगे होते हैं वहां पर पिछडी और दलित जातियां ही सामना करती है। शेष जातियां तो घरों में कैद होकर सोशल मीडिया पर भाषणबाज बन जाती हैं। 

             पर्व और त्यौहारों में अधिकतम हिस्सेदारी निचली जातियों की होती हैं। सरस्वती पूजा मनाने वाले, कावड यात्रा करने वाले, महावीरी झंडा निकालने वाले अधिकतर लोग कमजोर वर्ग के लोग होते हैं। सड़कों पर हिन्दुत्व का प्रदर्शन करने वाले अधिकतर लोग भी कमजोर वर्ग से आते है। 

              आदिवासियों का 80 प्रतिशत धर्मातंरण हो चुका है। चर्च पूरे आदिवासी इलाके में अपना वर्चस्व कायम कर रखे है। अब चर्च और मुस्लिम का पूरा फोकस दलितों और पिछडों पर है। खासकर दलितों का धर्मातंरण बहुत तेजी के साथ हो रहा है। अब अधिकतर गांवों मे चर्च की पहुंच हो चुकी है। दतिल और आदिवासियों को चर्च और मस्जिद में सम्मान मिलता है। मंदिर तो आज भी दलितों और आदिवासियों के लिए जातिगत भेदभाव की जगह है। मंदिर के पूजारी तो आज भी अपनी सर्वश्रेष्ठता के भाव से बंधा होता है। 

             जब दलित और पिछडे विहीन हिन्दुत्व होगा तब कैसी स्थिति होगी। तथाकथित बडी जातियां भी नहीं बचेगी। उनकी सर्वश्रेष्ठता का भाव भी विध्वंस हो जायेगा। तेजी के साथ इसका प्रभाव देखा जा सकता है। सरकारी हिन्दूवादी संगठनों पर वर्चस्व वाली जाति के लोग सिर्फ दुकानदारी चलाते हैं, पेट और परिवार पालते हैं, अपने ईमानदार दिखते हैं, जीवन दायनी होते हैं पर उनका नजदीकी ही क्यों बल्कि दूर के रिश्तेदार भी मालोमाल होता है, बडे पदों पर बैठा होता है।  *इसलिए* जाति तोडो सनातन जोडो का अभियान ही हिन्दुत्व को बचा सकता है।* 



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