संभल जाओ कमल वालों के आए दिन हार के

A makeover for BJP's poll symbol Lotus which is now 'bolder'

योगीराज योगेश

कर्नाटक चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। कांग्रेस की वहां बंपर जीत हुई और उम्मीद के मुताबिक भाजपा की जो दुर्गति होना थी सो हुई। एक बात यहां महत्वपूर्ण है कि कर्नाटक और इसके पूर्व अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस भले ही जीत का दंभ भर ले लेकिन मूल बात यह भी है कि इन दोनों राज्यों में भाजपा ने ही भाजपा को हराया है। कर्नाटक में भाजपा की हार की बात की जाए तो सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार है। इसके बाद के कारणों में पार्टी नेताओं मे फूट, गुटबाजी, येदुरप्पा जैसे लिंगायत समुदाय के बड़े नेता की उपेक्षा और कार्यकर्ताओं में असंतोष प्रमुख है। इन सबके इतर एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी के नाम पर स्टेट में चुनाव नहीं जीते जा सकते। राज्य में यदि चुनाव जीतना है तो मोदी मैजिक के साथ राज्य सरकार और विधायकों की कार्यप्रणाली व उनकी स्वच्छ छवि होना बहुत जरूरी है। बीते कुछ समय से भाजपा सरकारों और विधायकों को यह गुमान हो गया है कि वे भले ही भ्रष्टाचार में लिप्त रहें, लेकिन मोदी जी के नाम पर चुनाव जीत जाएंगे। भाजपा नेताओं को अब यह भ्रम तोड़ना होगा नहीं तो जनता यह भ्रम तोड़ देगी। जैसा कि कर्नाटक में हुआ।

कर्नाटक चुनाव के बाद लाख टके का सवाल यह है कि अब मध्यप्रदेश में क्या होगा ? क्योंकि कमोबेश यही हालत मध्यप्रदेश में भी हैं। अकेले मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा की भी तस्वीर कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है। यदि इन राज्यों में भी सत्ता और संगठन ने अपनी कार्यप्रणाली और छवि नहीं सुधारी तो यह राज्य भी भाजपा के हाथ से निकलने में देर नहीं लगेगी।
मध्यप्रदेश के संदर्भ में यदि बात की जाए तो जैसे कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा जैसे सीनियर लीडर की उपेक्षा हुई तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अभयदान दे दिया जाए। हकीकत यह है कि शिवराज का चेहरा भी अब लोगों को भारी लगने लगा है। राजनीतिक विश्लेषक तो यह भी कहते हैं कि यदि निकाय चुनाव परिणामों के बाद सत्ता और संगठन के चेहरे यानी शिवराज और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा को बदल दिया जाता तो मध्यप्रदेश में भाजपा के हालत चिंताजनक नहीं होते। क्योंकि निकाय चुनाव में भाजपा ने 16 में सात नगर निगम गंवा दिए। बदलाव के लिए यह स्पष्ट संकेत था, लेकिन आलाकमान ने इसको तवज्जो नहीं दी। नतीजा यह हुआ कि सत्ता और संगठन को लेकर लोगों में भी असंतोष देखने को मिल रहा है। सत्ता के हाल यह है कि कर्नाटक में 40 पर्सेंट कमीशन की बात सामने आई तो मध्यप्रदेश में सेंट परसेंट भ्रष्टाचार दिखाई दे रहा है। सरकारी दफ्तरों में कोई भी काम बिना रिश्वत दिए हो जाए तो यह आपके अहोभाग्य हैं। भ्रष्टाचार की वैतरणी ऐसी बह रही है कि हाल ही में जब लोकायुक्त ने संविदा पर 30,000 का वेतन पाने वाली असिस्टेंट इंजीनियर हेमा मीणा के यहां छापा डाला तो वे करोड़पति निकलीं। उनके घर से 1000000 का सोना, ₹75 लाख नगद, 20000 स्क्वायर फीट जमीन पर बना 1 करोड़ रुपए मूल्य का फार्म हाउस, 20 लग्जरी गाड़ियां, 100 से अधिक विदेशी नस्ल के कुत्ते और 20 से ज्यादा गाय मिली हैं। आलम यह है कि वे अपने बंगले पर काम करने वाले नौकरों से वॉकी टॉकी पर बात करती थीं। आलीशान महलनुमा बंगले में जैमर लगे हुए हैं।
प्रदेश में यह तो एक बानगी भर है। यहां के कई इंजीनियर, ऑफिसर नेता और व्यापारी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। यदि इनके ऊपर छापे डाले जाएं तो अरबों की संपत्ति मिलेगी। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार पर इस समय जो सबसे बड़ा आरोप है, वह भ्रष्टाचार का ही है। इस मामले में जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली शिवराज सरकार खुद भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है। निकट भविष्य में इस पर कोई लगाम लगते हुए भी नहीं दिख रही है। खुद शिवराज जी की इमेज उबाऊ और थकाऊ नेता की बनती जा रही है। 2018 में भी उनके एक बयान ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था, जिसमें शिवराज ने कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण नहीं हटा सकता। भाजपा आलाकमान को 2018 के चुनाव के बाद ही शिवराज को बदल देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद जब सरकार बनी तो उसकी कमान भी शिवराज को ही दे दी गई। यह आलाकमान की सबसे बड़ी गलती थी। हालांकि खुद शिवराज भाजपा आलाकमान को यह समझाने में सफल हो गए हैं कि वे 2023 में पार्टी को दोबारा से सत्ता में लाकर बताएंगे। इसी बात पर आलाकमान ने उन पर भरोसा कर लिया है। लेकिन जैसे…


 

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