कोविड -19 के वैक्सीन का तेजी से वितरण दुनिया भर की सरकारों के लिए बहुत बडी चुनौती होगी : विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ

 नई दिल्ली :  कोविड –19 के लिए वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद अपनी पूरी आबादी को कोविड –19 के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता सुनिश्चित करने के लिए वैक्सीन का तेजी से वितरण करना दुनिया की सरकारों के लिए बहुत बडी चुनौती होगी। जिनेवा स्थित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में कार्यरत दो प्रमुख भारतीय वैज्ञानिकों ने यह बात कही है।

डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन और डब्ल्यूएचओ में सलाहकार डॉ हमसादवानी कुगनन्थम ने कहा कि यह कठिन चुनौती न केवल भारत के सामने होगी बल्कि इस महामारी पर रोकथाम के लिए लोगों को टीके देने के काम की शुरूआत होने पर दुनिया के सभी देशों की सरकारों के सामने होगी।

रविवार को भारत के औषधी नियंत्रक – केन्द्रीय औषधी मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने ऑक्सफोर्ड के टीके कोविशील्ड को देश के वरिष्ठ नागरिकों और कोरोना योद्धाओं को लगाए जाने के लिए मान्यता प्रदान कर दी जिसका उत्पादन भारतीय सीरम संस्थान (एसआईआई) और भारत बायोटेक के कोवैक्सिन ने किया है।

इस समय 45 वैक्सीन का क्लिनिकल मूल्यांकन किया जा रहा है जबकि 156 वैक्सीन क्लिनिकल मूल्यांकन से पूर्व की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि पूरी जनसंख्या में कोविड –19 के खिलाफ रोग प्रतिरक्षण क्षमता विकसित करने में इन वैक्सीन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी लेकिन इनका तेजी के साथ वितरण करना विश्व की सरकारों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा।

कोवैक्स अत्यंत महत्वपूर्ण वैश्विक साझेदारी है जो कोविड –19 के उपचार को समान रूप से सुलभ बनाने तथा वैक्सीन के विकास, उत्पादन एवं उसकी उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कार्यरत है और इसका नेतृत्व कोलिएशन फॉर एपीडेमिक प्रीपेयरडनेस इनोवेशंस (सीईपीआई), गावी (द बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा स्थापित वैक्सीन एलायंसऔर डब्ल्यूएचओ द्वारा किया जा रहा है।

इन वैज्ञानिकों ने मनोरमा ईयरबुक 2021 में शामिल एक आलेख में लिखा है "यह एकमात्र वैश्विक पहल हैजो सरकारों और निर्माताओं के साथ  मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है ताकि कोविड-19 के  टीके दुनिया भर में उच्च-आय और निम्न-आय वाले दोनों देशों में उपलब्ध हो सकें।

 इन वैज्ञानिकों ने कहा कोवैक्स  का लक्ष्य 2021 के अंत तक वैसे सुरक्षित और प्रभावी टीकों की दो बिलियन खुराक देने का हैजो विनियामक अनुमोदन और / या डब्ल्यूएचओ प्रीक्वालिफिकेशन से गुजर चुके हैं। ये टीके सभी भागीदार देशों के लिए समान रूप से उपलब्ध किए जाएंगे और यह उपलब्धता उन देशों की आबादी के अनुपात में होंगे। शुरू में स्वास्थ्य कर्मियों को प्राथमिकता दी जाएगी और इसके बाद उन टीकों की उपलब्धता में विस्तार करके कमजोर समूहों को टीके दिए जाएंगे जैसे कि बुजुर्ग और जिन्हें पहले से स्वास्थ्य समस्याएं हैं।

उन्होंने कहा कि इसके बाद टीकों की खुराक अलग–अलग देश की आवश्यकतामहामारी की चपेट आने की आशंका और कोविड -19 खतरे के आधार पर उपलब्ध करायी जाएगी।

इन वैज्ञानिकों ने कहा कि टीकाकरण के साथ ही साथ निरंतर निगरानीट्रेसिंगपरीक्षण और उपचार सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।

डॉ स्वामीनाथन और डॉ कुगनन्थम ने कहा, "टीके हमें सामूहिक प्रतिरक्षा हर्ड इम्युनिटी हासिल करने में मदद करेंगेलेकिन तब तक  हमें संक्रमण को रोकने और फैलने से बचने के लिए गैर-औषधीय उपायों को अपनाने की आवश्यकता होगी।"

उन्होंने कहा यह स्पष्ट है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में वायरस का खतरा व्याप्त है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के नियंत्रण के उपायों में ढील देते ही महामारी के प्रसार में बढोतरी होगी। सामाजिक दूरी बनाए रखने और मास्क पहनने जैसे गैर औषधीय उपायों से महामारी के प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी और संक्रमण और मृत्यु दर को कम रखा जा सकेगा।

पिछले साल प्रकाशित वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक का हवाला देते हुएउन्होंने कहा कि कोई देश महामारी या वैश्विक महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि अधिकांश देशों में महामारी और वैश्विक महामारी का मुकाबला करने के लिए जरूरी प्रभावशाली स्वास्थ्य प्रणालियों का अभाव है।

वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियां उत्पन्न करने के अलावाइस महामारी ने समाज में प्रणालीगत असमानताओं को बढ़ाया है - सामाजिकआर्थिकलिंग संबंधी असमानताएं बढी हैं और ये लोगों के स्वास्थ्य पर भयानक प्रभाव डाल सकती हैं। कई देशों मेंसार्स –सीओवी -2 के संक्रमण और कोविड -19 के कारण होने वाली मौतें नस्लीय और अल्पसंख्यक समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही है। इसने प्रदर्शित किया है कि गरीबकम शिक्षित और हाशिए पर रहने वाले लोग इस महामारी से असमान रूप से प्रभावित हैं। इन वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा कि महिलाओं और बच्चों पर असमान रूप से इस महामारी का प्रभाव पडा है और इसके कारण अनुमानत 10 करोड लोग गरीबी की चंगुल में फंस जाएंगे।

स्कूलों को फिर से खोलने के संबंध मेंइन वैज्ञानिकों ने कहा कि स्कूल अलग–थलग नहीं बल्कि समुदाय के भीतर संचालित होते हैं। इस प्रकारसमुदाय को प्रभावित करने वाली कोई भी चीज स्कूलों को भी प्रभावित करती है। आंकडों से पता चलता है कि भले ही स्कूल ऑनलाइन  हो गए होंलेकिन दुनिया भर के लगभग 463 मिलियन बच्चों को सुदूर स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं है। दुनिया के एक तिहाई बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है और वर्तमान में चार देशों में से एक देश में स्कूलों के लिए फिर से खोलने की तारीख तय नहीं है।

यह इस महामारी के विनाशकारी परिणाम हैं जो बच्चों को जीवन भर के लिए प्रभावित कर सकते हैं। वे शारीरिक और भावनात्मक हिंसा के अधिक शिकार होंगे। उनके बाल श्रम की चंगुल में फंसने का खतरा होगा। वे यौन शोषण के शिकार होंगे और गरीबी का दुष्चक्र और तेज होगा। हमें ऐसे नीति निर्णायकों की जरूरत है जो संबंधित कारकों की बारीकी से जांच करें और बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करें।ʺ

महामारी से कई सबक मिले हैं जिन्हें भविष्य के लिए अनुकूल और तैयार करने के लिए सीखा जा सकता है। लिंग और समानता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा। प्रभावी रूप से संकट का मुकाबला करने के लिए लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा।

उन्होंने कहा यह महामारी समाप्त हो जाएगीलेकिन दुनिया को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है कि हम अगली बार बेहतर तरीके से  तैयार हों। और केवल विज्ञान तथा एकजुटता के माध्यम से ही समाधान मिल सकता है।ʺकोविड -19 के वैक्सीन का तेजी से वितरण दुनिया भर की सरकारों के लिए बहुत बडी चुनौती होगी : विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ


नई दिल्ली, 5 जनवरी : कोविड –19 के लिए वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद अपनी पूरी आबादी को कोविड –19 के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता सुनिश्चित करने के लिए वैक्सीन का तेजी से वितरण करना दुनिया की सरकारों के लिए बहुत बडी चुनौती होगी। जिनेवा स्थित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में कार्यरत दो प्रमुख भारतीय वैज्ञानिकों ने यह बात कही है।


डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन और डब्ल्यूएचओ में सलाहकार डॉ हमसादवानी कुगनन्थम ने कहा कि यह कठिन चुनौती न केवल भारत के सामने होगी बल्कि इस महामारी पर रोकथाम के लिए लोगों को टीके देने के काम की शुरूआत होने पर दुनिया के सभी देशों की सरकारों के सामने होगी।


रविवार को भारत के औषधी नियंत्रक – केन्द्रीय औषधी मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने ऑक्सफोर्ड के टीके कोविशील्ड को देश के वरिष्ठ नागरिकों और कोरोना योद्धाओं को लगाए जाने के लिए मान्यता प्रदान कर दी जिसका उत्पादन भारतीय सीरम संस्थान (एसआईआई) और भारत बायोटेक के कोवैक्सिन ने किया है।


इस समय 45 वैक्सीन का क्लिनिकल मूल्यांकन किया जा रहा है जबकि 156 वैक्सीन क्लिनिकल मूल्यांकन से पूर्व की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि पूरी जनसंख्या में कोविड –19 के खिलाफ रोग प्रतिरक्षण क्षमता विकसित करने में इन वैक्सीन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी लेकिन इनका तेजी के साथ वितरण करना विश्व की सरकारों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा।


कोवैक्स अत्यंत महत्वपूर्ण वैश्विक साझेदारी है जो कोविड –19 के उपचार को समान रूप से सुलभ बनाने तथा वैक्सीन के विकास, उत्पादन एवं उसकी उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कार्यरत है और इसका नेतृत्व कोलिएशन फॉर एपीडेमिक प्रीपेयरडनेस इनोवेशंस (सीईपीआई), गावी (द बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा स्थापित वैक्सीन एलायंस) और डब्ल्यूएचओ द्वारा किया जा रहा है।


इन वैज्ञानिकों ने मनोरमा ईयरबुक 2021 में शामिल एक आलेख में लिखा है "यह एकमात्र वैश्विक पहल है, जो सरकारों और निर्माताओं के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है ताकि कोविड-19 के टीके दुनिया भर में उच्च-आय और निम्न-आय वाले दोनों देशों में उपलब्ध हो सकें।


 इन वैज्ञानिकों ने कहा “कोवैक्स का लक्ष्य 2021 के अंत तक वैसे सुरक्षित और प्रभावी टीकों की दो बिलियन खुराक देने का है, जो विनियामक अनुमोदन और / या डब्ल्यूएचओ प्रीक्वालिफिकेशन से गुजर चुके हैं। ये टीके सभी भागीदार देशों के लिए समान रूप से उपलब्ध किए जाएंगे और यह उपलब्धता उन देशों की आबादी के अनुपात में होंगे। शुरू में स्वास्थ्य कर्मियों को प्राथमिकता दी जाएगी और इसके बाद उन टीकों की उपलब्धता में विस्तार करके कमजोर समूहों को टीके दिए जाएंगे जैसे कि बुजुर्ग और जिन्हें पहले से स्वास्थ्य समस्याएं हैं।”


उन्होंने कहा कि इसके बाद टीकों की खुराक अलग–अलग देश की आवश्यकता, महामारी की चपेट आने की आशंका और कोविड -19 खतरे के आधार पर उपलब्ध करायी जाएगी।


इन वैज्ञानिकों ने कहा कि टीकाकरण के साथ ही साथ निरंतर निगरानी, ट्रेसिंग, परीक्षण और उपचार सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।


डॉ स्वामीनाथन और डॉ कुगनन्थम ने कहा, "टीके हमें सामूहिक प्रतिरक्षा हर्ड इम्युनिटी हासिल करने में मदद करेंगे, लेकिन तब तक हमें संक्रमण को रोकने और फैलने से बचने के लिए गैर-औषधीय उपायों को अपनाने की आवश्यकता होगी।"


उन्होंने कहा “यह स्पष्ट है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में वायरस का खतरा व्याप्त है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के नियंत्रण के उपायों में ढील देते ही महामारी के प्रसार में बढोतरी होगी। सामाजिक दूरी बनाए रखने और मास्क पहनने जैसे गैर औषधीय उपायों से महामारी के प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी और संक्रमण और मृत्यु दर को कम रखा जा सकेगा।”

पिछले साल प्रकाशित वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि कोई देश महामारी या वैश्विक महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि अधिकांश देशों में महामारी और वैश्विक महामारी का मुकाबला करने के लिए जरूरी प्रभावशाली स्वास्थ्य प्रणालियों का अभाव है।

वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियां उत्पन्न करने के अलावा, इस महामारी ने समाज में प्रणालीगत असमानताओं को बढ़ाया है - सामाजिक, आर्थिक, लिंग संबंधी असमानताएं बढी हैं और ये लोगों के स्वास्थ्य पर भयानक प्रभाव डाल सकती हैं। कई देशों में, सार्स –सीओवी -2 के संक्रमण और कोविड -19 के कारण होने वाली मौतें नस्लीय और अल्पसंख्यक समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही है। इसने प्रदर्शित किया है कि गरीब, कम शिक्षित और हाशिए पर रहने वाले लोग इस महामारी से असमान रूप से प्रभावित हैं। इन वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा कि महिलाओं और बच्चों पर असमान रूप से इस महामारी का प्रभाव पडा है और इसके कारण अनुमानत 10 करोड लोग गरीबी की चंगुल में फंस जाएंगे।

स्कूलों को फिर से खोलने के संबंध में, इन वैज्ञानिकों ने कहा कि स्कूल अलग–थलग नहीं बल्कि समुदाय के भीतर संचालित होते हैं। इस प्रकार, समुदाय को प्रभावित करने वाली कोई भी चीज स्कूलों को भी प्रभावित करती है। आंकडों से पता चलता है कि भले ही स्कूल ऑनलाइन हो गए हों, लेकिन दुनिया भर के लगभग 463 मिलियन बच्चों को सुदूर स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं है। दुनिया के एक तिहाई बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है और वर्तमान में चार देशों में से एक देश में स्कूलों के लिए फिर से खोलने की तारीख तय नहीं है।

“यह इस महामारी के विनाशकारी परिणाम हैं जो बच्चों को जीवन भर के लिए प्रभावित कर सकते हैं। वे शारीरिक और भावनात्मक हिंसा के अधिक शिकार होंगे। उनके बाल श्रम की चंगुल में फंसने का खतरा होगा। वे यौन शोषण के शिकार होंगे और गरीबी का दुष्चक्र और तेज होगा। हमें ऐसे नीति निर्णायकों की जरूरत है जो संबंधित कारकों की बारीकी से जांच करें और बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करें।ʺ

महामारी से कई सबक मिले हैं जिन्हें भविष्य के लिए अनुकूल और तैयार करने के लिए सीखा जा सकता है। लिंग और समानता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा। प्रभावी रूप से संकट का मुकाबला करने के लिए लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा।

उन्होंने कहा “यह महामारी समाप्त हो जाएगी, लेकिन दुनिया को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है कि हम अगली बार बेहतर तरीके से तैयार हों। और केवल विज्ञान तथा एकजुटता के माध्यम से ही समाधान मिल सकता है।ʺ

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