डोनाल्ड ने दंगों का मुस्लिमकरण क्यों होने दिया ?

राष्ट्र-चिंतन 
 


डोनाल्ड टम्प बंकर में क्यों चले गये, अमेरिकी पुलिस आगजनी, लूट-मार करने वालों पर गोलियां क्यों नहीं चलायी, दंगे क्योंं भड़कने दिये गये ? ये सभी प्रश्नों का उत्तर तलाशे जाने चाहिए। इन प्रश्नों का उत्तर तलाशना मुश्किल भी नहीं है। वास्तव में डोनाल्ड टम्प सिर्फ एक व्यापारी ही नहीं बल्कि काइयां राजनीतिज्ञ भी हो गये हैं। एक साथ वे कई आत्मघाती और भस्मासुर सरीखें समूहों को बेनकाब करना चाहते थे और अमेरिका के अंदर में राष्टवाद की भावना को मजबूत करना चाहते थे। राष्टवाद की भावना ही डोनाल्ड टम्प की जीत की गारंटी रही है। अपने इस नीति में वे पूरी तरह से सफल रहे हें। अब डोनाल्ड टम्प को फिर से दुबारा राष्टपति बनने से कोई रोक नहीं सकता है।
                               भयंकर अमेरिकी दंगों की साजिश को समझने के लिए एक मुस्लिम शरणार्थी के कारनामें को समझना होगा, यह तथ्य अमेरिका और यूरोप के बीच काफी कुख्यात हुआ है और इसके सबक भी सीखने के मांग हो रही है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने की परमपरा को भी आत्मघाती माना जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि जिन्हें हम शरणार्थी समझ कर शरण देते हैं और अपने देश में फलने-फूलने का अवसर देते हैं वही हमारी संप्रभुत्ता के लिए और शांति-सदभाव के लिए दुश्मन बन जाते हैं, घृणा और हिंसा फैलाने के औजार बन जाते हैं। अगर ऐसी सोच और समझ विकसित होती जायेगी तो फिर अमेरिका और यूरोप में रहने वाली शरणार्थी मुस्लिम आबादी की समस्याएं बढेंगी, उन्हें देश से खदडेने की मांग भी प्रभावित ढंग उठेगी। जब शरणार्थियों को बाहर करने की मांग उठेगी तो फिर सरकारें भी दबाव में आयेगी। फिर शरणार्थियों के उपर तरह-तरह के प्रताड़ना और उत्पीड़न के तरीके बनेंगे। पर इसके जिम्मेदार सिर्फ अमेरिका और यूरोप के राष्टवादी संगठन और मानसिकताएं भी नहीं होगी बल्कि मुस्लिम शरणार्थियों की करतूत भी होगी जो एक साजिश के तहत भस्मासुर बन जाती हैं? ऐसे भी अमेरिका और यूरोप में दक्षिण पथ तेजी के साथ अपना प्रभाव बढा है और उदारवादी मानसिकताएं तेजी के साथ पराजित हो रही हैं?
                               अब यहां यह प्रश्न उठता है कि वह मुस्लिम शरणार्थी करतूत है क्या ? इस मुस्लिम शरणार्थी करतूत को समझेगे और जानेंगे तो फिर आप भी आश्चर्य में पड़ जायेगे , मुस्लिम शरणार्थियों को मानवीय सुविधाएं पहुंचाने या फिर उन पर दया करने की मानसिकताओं को त्यागने पर विवश होंगे। सोमालिया के एक मुस्लिम परिवार में 1982 में एक लड़की पेदा लेती है, उसका नाम इल्हान ओमर था। मुस्लिम हिंसा और आतंकवाद से त्रस्त सोमालिया में भूख और प्यास चरम पर थी। ऐसी विकट स्थिति में इल्हान ओमर नाम की वह लड़की टीएनएजर वर्ग में होने के बावजूद शरणार्थियचों की एक समूह में शामिल होकर  अमेरिका पहुंच जाती है। अमेरिका में उसे न केवल शरण मिलता है बल्कि अमेरिकी सरकार उसे आर्थिक सहायता देकर पढ़ने और आगे बढने के लिए न केवल सहयोग करती है बल्कि आर्थिक सहायता भी करती है। अमेरिकी सरकार अपने नागरिकों के हिस्से की आर्थिक बजट को इल्हान ओमर जैसे शरणार्थियों पर खर्च करती है। बाद में यह लड़की बडी होने पर एक अमेरिकी नागरिक से शादी भी कर लेती है। अमेरिकी नागरिक से शादी करने पर उसे अमेरिकी नागरिकता भी मिल जाती है। इसके बाद वह अपना इस्लम प्रेम और आतंकवादी हिंसा प्रेम दिखाना शुरू कर देती है। वह अमेरिका में गोरे और कालों के बीच में घृणा पेदा करने लग जाती है। इसी घृणा की कसौटी पर वह मुस्लिम लड़की सांसद भी बन जाती है। कथित काले व्यक्ति जार्ज फलायड की मौत पर भड़की हिंसा को भडकाने के काम इल्हान ओमर  कर रही है, उसके परिवार के सदस्य कर रहे हैं। जगह-जगह पर माइक लगा कर वह काले समुदाय को भड़का रही है। टिवटर पर भी वह अमेरिकी काले नागरिकों को भड़का रही है। इस कारण अमेरिका और यूरोप की गोरी आबादी के बीच इल्हान ओमर का चेहरा एक खतरनाक मुस्लिम शरणार्थी के दुष्परिणामों की बनी हुई है। अमेरिका में पिछले राष्टपति चुनावों के समय भी मुस्लिम शरणार्थियों और मुस्लिम आबादी द्वारा कट्टरवादी और विखंडनकारी सक्रियता देखी गयी थी। मस्जिदों से लाउडिस्पीकर से सरेआम ऐलान किया जाता था कि इस्लाम खतरे में है, इसलिए राष्टपति डोनाल्ड टम्प को नहीं बल्कि हिलेरी क्लिंटन को बनाइये। अमेरिका में मुस्लिम शरणार्थी काली मानसिकता के साथ गठजोड़ कर अपनी राजनीतिक शक्ति बढाना चाहते हैं और अमेरिकी कानूनांें से निजात पाने की मानसिकताएं सक्रिय कर रखी हैं।
                           प्रमाणित तौर पर अमेरिका में भीषण जो दंगे हुए हैं उसके पीछे साजिश के गुनहगारों में मुस्लिम शरणार्थी और हिंसक वामपंथ की गठजोड़ रही है, ये दोनों मानसिकताएं अमेरकिा में अपने-अपने अस्तित्व की मजबूती चाहती हैं और दोनों मानिकसताएं अमेरिका की गोरी मानसिकताओं का दमन करना चाहती हैं और अस्तित्व विहीन करना चाहती है। अमेरिकी दंगों की शुरूआत और भीषण दुष्परिणामों के बीच में एक संगठन का नाम दुनिया भर में उछला है और वह संगठन दुनिया भर में चल रहे नक्सली हिंसा और वामपंथ की चरमपंथी मानसिकता का ही रूप है। उस संगठन का नाम एंटीफा है। एंटीफा एक वामपंथ चरमपंथी संगठन है। इस संगठन का उदय अमेरिका में पूंजीवाद को ध्वस्त करने और सोवियत संघ तथा चीन के मॉडल पर वामपंथ को स्थापित करने के लिए हुआ था। यह संगठन हमेशा से गोपनीय तरीके से अपना सांगठनिक कार्य करता है। यह तथाकथित कमजोर वर्ग का प्रश्न उठा कर अपना अस्तित्व कायम करने पर सक्रिय रहता है। 
                    एंटीफा जैसे संगठनों से एक समय अमेरिका को कोई खतरा भी नहीं था। क्योंकि अमेरिका में उसे कोई विशेष स्थान नहीं मिलता था और न ही एंटीफा का संगठन मजबूत होकर सामने आता था। एक तरह से एंटीफा की सक्रियता को नजरअंदांज कर दिया जाता था और उस पर उदासीनता पसार दी जाती थी। लेकिन अब जब एंटीफा और भस्मासुर के तौर पर खडी मुस्लिम शरणाथियों की दुष्परिणामों की उपज आाबदी भी साथ-साथ है तब अमेरिकी संप्रभुत्ता को गहरी चोट पहंुच रही है। अब एंटीफा न केवल शक्तिशाली हो गया है बल्कि वह अमेरिका में उदारवाद को दफन कर मजहबी मानसिकता का भी प्रचार-प्रसार करने कें शामिल हो गया है। एंटीफा अब अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर आ गया है।
                                    जार्ज फलायड की मौत के बाद जो दंगे हुए हैं वे दंगे काफी डरावने वाले हैं, उसके दुष्परिणाम भी भीषण होगेे? दंगे सिर्फ एक-दो शहरों में नहीं हुए हैं। दंगे अमेरिका के लगभग सभी बड़े शहरों में हुए हैं। आगजनी की घटनाएं हुई है। सरकारी संपत्तियां नष्ट की गयी हैं। बहुसंख्यक गोरी आबादी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई है। पुलिस पर हमले हुए है। पुलिस उन दंगों से निपटने में विफल रही है। हार कर अमेरिकी राष्टपति डोनाल्ड टम्प ने सेना उतारी है। अमेरिकी सेना दंगों पर नियंत्रण की है। जब दंगों से निपटने के लिए पुलिस विफल हो जाती है और फिर सेना को उतारने के लिए विवश होना पडे तो फिर दंगे की स्थिति कितनी खतरनाक होगी और किसनी भयावह होगी यह समझा जा सकता है।
अमेरिका ही नहीं बल्कि इसकी आग अन्य देशों में भी भड़काने की कोशिश हुई है। खास कर व्रिटेन में भी बडे-बडे प्रदर्शन हुए है। भारत में भी इस घृणित मानसिकताओं को भड़काने की कोशिश हुई है। भारत में भी सोशल मीडिया पर ऐसी करतूतें हुई है। इस प्रसंग पर भारत के मुस्लिम कट्टरपंथी और वामंपंथी एक नजर आये हैं। मुस्लिम कट्टरपंथी कहते हैं कि काश अफजल गुरू की फांसी के फैसले के समय ऐसा सैलाब सड़कों पर निकलता और ऐसी हिंसा होती तो फिर अफजल गुरू की फांसी नहीं होती। वामपंथी कट्टरपंथी सोशल मीउिया पर कहते हैं कि भारत में दलितों पर अत्याचार के खिलाफ अमेरिका जैसे दंगे क्यों नहीं होते? क्या यह सही नहीं है कि भारत में वामपंथ और मुस्लिम कट्टरपंथ साथ-साथ नहीं चलते हैं? मुस्लिम कट्टरपंथ अब तो भारत के बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ उग्र दलितों को भड़काने में लगे हुए है। जबकि अधिकतर दलित इस साजिश को समझते हैं। फिर भी सोशल मीडिया पर वामपंथी जमात और मुस्लिम कट्टरपंथ की जुगलबंदी खतरनाक है और भारत की संप्रभुत्ता को नुकसान पहुंचाने वाली है।
                                   जार्ज फलायड की मौत की घटना कोई साजिश का परिणाम भी नहीं है। कोई गोरी मानसिकता की उपज भी नहीं थी। यह एक सामान्य घटना थी जो पुलिस क्रियाकलाप में शामिल थी। अमेरिका ही क्यों बल्कि दुनिया के हर देश में पुलिस उग्र लोगों ओर अपराधियों को नियंत्रित करने के लिए इस तरह की घटना को अंजाम देती हैं। अभी-अभी भारत में भी ऐसी घटना की तस्वीरें समाने आयी थी और उस पर बड़ी सक्रियता भी सामने आयी थी। एक शराबी और उग्र डॉक्टर को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने उस जमीन पर लेटा कर और बल प्रयोग कर उसके हाथ पीछे कर बांध दिये थे। जार्ज फलायड एक उग्र मानसिकता का व्यक्ति था और उस पर आपराधिक षडयंत्र के आरोप थे। वह पुलिस के नियंत्रण में नहीं आ रहा था। पुलिस ने नियंत्रण में लाने के लिए बल का प्रयोग किया था जिसके कारण उसकी मौत हुई थी। अत्यधिक बल प्रयोग करने से अमेरिकी पुलिस को बचना चाहिए था। 
                               आप यह समझ रहें होगे कि इन दंगों से गोरी आबादी या फिर डोनाल्ड टम्प को कोई नुकसान होने वाला है तो फिर आप गलत है। अमेरिका में दखिण पंथ का उभार होगा, राष्टवादी शक्तियां मजबूत होगी। डोनाल्ड टम का फिर राष्टपति बनने के लिए वातावरण तैयार कर दिया गया है। मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ और राष्टवाद की कसौटी पर ही डोनाल्ड टम्प राष्टपति बने थे। एक सामान्य घटना को दंगे का रूप देकर उग्र और हिंसक काली मानसिकताएं खड़ी कर दंगे फैलाना, कहीं से भी हितकारी नहीं है। यह अस्वीकार है।


 


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