कठिन डगर है पनघट की







प्रधानमंत्री जी ने जल जीवन मिशन के अंतर्गत हर घर को नल के माध्यम से पानी पहुंचाने की घोषणा कर देश को पेयजल की समस्या से निजात दिलाने का भरोसा दिलाया है, किंतु देश में पानी की  विद्यमान स्थिति को देखते हुए इस योजना के संदर्भ में यही कहना पड़ रहा है- 'बड़ी कठिन डगर है पनघट की" , जहां से लाकर पानी घर घर को उपलब्ध कराया जाएगा।आज देश के बड़े भूभाग में निरंतर जल संकट उत्पन्न होने ,भूगर्भ जलस्तर के नीचे जाने तथा जल स्रोतों के निरंतर नष्ट होते जाने के कारण जल की उपलब्धता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई हैl इन्हीं सब तथ्यों को दृष्टि में रखकर वित्त मंत्री सीतारमण ने बजट पेश करते हुए कहा था- भारत में पानी की सुरक्षा और सभी भारतीयों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है और इस दिशा में सरकार का एक बड़ा कदम जल शक्ति मंत्रालय का गठन है ।जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में हर घर जल नल के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा और जल शक्ति मंत्रालय राज्यों के साथ मिलकर इस कार्य को अंजाम देगा। अभी देश के 18% ग्रामीण घरों में ही जल की आपूर्ति नल के माध्यम से होती है शेष सभी 85% घरों में नल से जल की आपूर्ति आगामी 5 वर्षों में पूर्ण की जानी है जिसके लिए आवश्यक है देश में प्रचुर मात्रा में जल का उपलब्ध होना। जल जीवन मिशन को पूर्णता प्रदान करने हेतु इजराइल और भारतीय अधिकारियों की एक बैठक नीति आयोग के साथ हो चुकी है । उल्लेखनीय है कि इजराइल में पाइप लाइन के जरिए लोगों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इजराइल से प्राप्त सूचना एवं तकनीकी का प्रयोग कर उपलब्ध जल को पाइप लाइन के माध्यम से घर घर पहुंचाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है आज

 

भारत में भूजल का 4% पानी पेयजल के रूप में तथा 80% पानी खेती की सिंचाई में इस्तेमाल हो रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनसंख्या में से लगभग 60 करोड़ भारतीय गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। स्वच्छ पेयजल नहीं मिलने से देश में हर साल 200000 लोगों की मौत हो जाती है ।अनुमान है कि 2030 तक देश में पानी की मांग आज से लगभग दोगुनी हो जाएगी और यदि इसे पूरा नहीं किया गया तो इससे जीडीपी में 6% तक की गिरावट भी आ सकती है। देश में वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति भूजल की उपलब्धता 14180 लीटर प्रतिदिन थी जो 1991 में 6030 लीटर ,2001 में 5120 लीटर, 2020 में 36 70 लीटर और 2050 में 3120 लीटर रह जाएगी।प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति उपलब्ध जल की मात्रा वर्ष 2001 में 1844 क्यूबिक मीटर थी जो 2011  में1544 क्यूबिक मीटर हो गई है। यह 2050 तक आते-आते प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1140 क्यूबिक मीटर रह जाने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय पैमाने के अनुसार जिस क्षेत्र में जल की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 1000 क्यूबिक मीटर से नीचे आ जाती है तो वह क्षेत्र जल उपलब्धता की दृष्टि से संकटग्रस्त क्षेत्र माना जाता है। आज देश में अनेक नदी बेसिन में जल उपलब्धता की मात्रा निरंतर नीचे जा रही है।भारत के अनेक महत्वपूर्ण शहरों में दिन प्रतिदिन  गिरते जलस्तर को देखा जा रहा हैतथा वहां के भूगर्भ में विद्यमान जल को देखकर यह कहा जा रहा है कि वहां भूगर्भ काजल लगभग समाप्त हो चुका है ।गांव में आज महिलाओं को मीलो चलकर पानी की व्यवस्था करनी पड़ रही है और वह पानी भी ऐसा जिसको पीने से पहले सभ्य समाज के लोग सौ बार सोचे ,किंतु हमारे ग्रामीण समाज को पानी की अनुपलब्धता के चलते यही गंदा पानी पीना पड़ रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 साल बाद भी देश का पर्याप्त ग्रामीण भू-भाग पेयजल की उपलब्धता से दूर है ,शुद्ध पेयजल की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती ।शुद्ध पेयजल की उपलब्धता के लिए आवश्यक है कि देश में उपलब्ध जल का व्यवस्थित संरक्षण, संवर्धन एवं उपयोग हो,जिसके लिए अभी अत्यधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है वर्षा से प्राप्त होने वाले जल को सुरक्षित करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना को आगे बढ़ाने की अत्यंत आवश्यकता है ।नदियों के परस्पर जुड़ जाने से उनमें जल की अत्यधिक उपलब्धता हो जाने के कारण अनायास आने वाली बाढ़ से बचने के लिए उसके अधिक जल को अन्य नदियों के माध्यम से देश के अन्य क्षेत्रों में भेजा जा सकता है और वहां पर उस अधिक बरसाती जल का आवश्यकता के अनुसार सदुपयोग किया जा सकता है, किंतु इस दिशा में सरकार द्वारा अभी तक कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए और आश्चर्य होता है यह देख कर कि सरकार ने जल जीवन मिशन को पूर्णता प्रदान करने हेतु नदी जोड़ने की महत्वपूर्ण योजना को मूर्त देने के लिए  मात्र ₹100000 बजट आवंटित किया है। आवंटित बजट को देखते हुए नहीं लगता कि सरकार की दृष्टि नदी  जोड़ों योजना पर है और वह नदियों को परस्पर जोड़कर पानी की समस्या पर नियंत्रण पाना चाहती है, किंतु यदि सरकार नदी जोड़ो योजना को मूर्त रूप देकर नदियों को परस्पर जोड़ देती है तो निश्चित रूप से पेयजल की समस्या के साथ-साथ सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता को भी सुनिश्चित किया जा सकता है और इसके चलते फसलों की सिंचाई हेतु भूगर्भ के जल के असीमित दोहन को भी रोका जा सकता है, जिससे जहां एक और भूगर्भ केजल का विस्तार होगा तथा जल स्तर बढ़ेगा वही सिंचाई एवं पीने पूरे देश में  जल उपलब्ध होगा। आज ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं वरन् राष्ट्रीय राजधानी सहित अनेक शहरी इलाकों में भी पेयजल की अत्यंत कमी है। गर्मी के दिनों में दिल्ली सहित अनेक शहरों  की पर्याप्त आबादी पेयजल की व्यवस्था हेतु टैंकरों द्वारा आपूरित जल पर निर्भर रहती है। विडंबना तो यह है कि देश के अनेक भागों में  शहरी अंचल में जहां नल के माध्यम से घर घर पानी पहुंचाने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जा चुकी है और प्रभावी ढंग से कार्य भी कर रही है वहां पर भी नव धनाढ्य द्वारा ट्यूबवेल के माध्यम से भूगर्भ के जल का अपरिमित दोहन किया जा रहा है तथा उस जल के उपयोग का कोई भी मूल्य या कर भी सरकार तक नहीं पहुंच रहा किंतु भूगर्भ जल का यह अपरिमित दोहन जल संकट को ही उत्पन्न कर रहा है, जिसके कारण भूगर्भ का कम हो रहा जल दूषित भी हो रहा है क्योंकि भूगर्भ के जल में ही अनेकानेक उद्योगों फैक्ट्रियों आदि  से छोड़ा गया जल भूगर्भ में जाकर वहां के जल को प्रदूषित कर रहा है, जिससे भूगर्भ का यह जल न तो पीने लायक बच रहा है और न ही सिंचाई के ही योग्य ,क्योंकि इस जल में नाना प्रकार के जहरीले तत्व शामिल हो रहे हैं जो मानव जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को जल जीवन मिशन को व्यापक स्तर पर प्रभावी करने हेतु सरकारी व्यवस्था के साथ ही साथ जनसामान्य को भी उस से जोड़ते हुए निजी निवेश को भी प्रोत्साहित करना होगा जिसके माध्यम से जल जीवन मिशन को व्यापक स्तर पर प्रभावी बनाया जा सकता है वर्ष 2011 के आंखों के अनुसार देश के कुल 24 करोड़ परिवारों में से कुल सात करोड़ परिवार परिवारों को ही शोधित जल उपलब्ध हो पा रहा है विडंबना है कि लोकतंत्रात्मक सरकार में भी अब तक देशवासियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। ग्रामीण परिवारों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 2019-20 में लगभग 2700000 जल स्रोतों के जल की जांच प्रयोगशाला में की जानी है इस अवधि में नल द्वारा जलापूर्ति की पहुंच बनाने वाले ग्रामीण परिवारों की संख्या के संदर्भ में कोई लक्ष्य अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है । सरकार ने जल जीवन मिशन के अंतर्गत वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में नल से पानी उपलब्ध कराने की बात कही है और इसके लिए 10000 करोड रुपए का बजट आवंटित किया है ,किंतु यह योजना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है ।इसके लिए अब तक  न तो ऐसे ग्रामों की कोई सूची ही बनाई गई है ,जहां नलों के माध्यम से जल की आपूर्ति करना प्राथमिकता पर निर्भर है, साथ ही यह भी अभी तक भी निश्चित नहीं किया गया कि इन गांवों को पानी कहां से उपलब्ध कराया जाएगा। आज इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है कि सर्वप्रथम  उन गांवों की सूची तैयार कर ली जाय  जहां पानी पहुंचाना है। साथ ही यह भी तय करना होगा जोकि पानी कहां से और किन स्रोतों से पहुंचाया जाएगा। साथ हीजल जीवन मिशन को प्रभावी बनाने तथा हर घर को नल से जल उपलब्ध कराने हेतु आज सबसे अधिक आवश्यकता जल का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना है ।अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की उपलब्धता आवश्यकता 25 लीटर तक माना है जिसे दृष्टि में रखते हुए सरकार को इसी के अनुरूप प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की आपूर्ति की मात्रा तय करनी होगी जिसको उपलब्ध कराने हेतु सरकार ने इस योजना पर 10000.66 करोड रुपए खर्च करने की बात कही है, किंतु इस बजट के माध्यम से आवश्यकता अनुसार सुनियोजित समयबद्ध कार्य संपादन हेतु सुचिंतित कार्य योजना तैयार कर प्रभावी कार्यवाही करना अत्यंत आवश्यक है ,अन्यथा देश में पूर्व में बनाए गए बड़े-बड़े बांधों की तरह यह योजना भी हाथी के दांत दिखावटी दांत बन कर रह जाएगी। वर्ष 2011 तक देश में बड़े-बड़े बांध बनाने और सिंचाई सुविधाओं का ढांचा खड़ा करने पर लगभग 700000 करोड रुपए की भारी-भरकम राशि का निवेश किया गया है किंतु इन सुविधाओं का अब तक प्रभावी उपयोग नहीं हो सका है इन बड़े-बड़े बांधों से अब तक मात्र सिंचाई व्यवस्था के रूप में नहरों का 15 -16% तक ही उपयोग हो सका है। आज देश में लगभग 4500 छोटी छोटी नदियां और लगभग 20000 तालाबों ने अपना अस्तित्व खो दिया और उससे भी अधिक निकट भविष्य में अपना अस्तित्व होने के कगार पर हैं। जल स्रोतों की निरंतर हो रही कमी के कारण भूगर्भ का जल समाप्त हो रहा है और हमारे अधिकांश शहर भूजल समाप्त हो जाने के कारण डे जीरो की स्थिति में पहुंच गए हैं ।

देश के प्रमुख शहर दिल्ली ,फरीदाबाद ,गुरुग्राम ,कानपुर ,जयपुर, हैदराबाद, अमरावती ,धनबाद ,जमशेदपुर, मेरठ ,आसनसोल, विशाखापट्टनम ,चेन्नई, मदुरई ,कोची ,बंगलुरु, कोयंबटूर, शिमला ,सोलापुर ,मुंबई और विजयवाड़ा डे जीरो की स्थिति में पहुंच गए हैं, उनका भूगर्भ का जल समाप्त हो चुका है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट के अनुसार देश में औसतन 135 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के लिए आवश्यक है किंतु जल की उपलब्धता की यह मात्रा औ 69 लीटर पर आकर रुक जाती है ।भारत के करीब 54% भूभाग पर भूजल तेजी से नीचे की ओर जा रहा है। जल की स्थिति को देखते हुए 2030 तक 40% लोगों को ही पीने का पानी उपलब्ध हो पाएगा ।2050 तक यह स्थिति बनी रही तो ज़ीडीपी का 6% पानी पर ही खर्च होगा। उपलब्ध जल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हर घर तक नल के माध्यम से 2024 तक जल पहुंचाने की योजना असंभव तो नहीं किंतु कष्ट साध्य एवं श्रम साध्य अवश्य प्रतीत हो रही है ।योजना को मूर्त रूप देने के लिए आवश्यक है कि राज्य सरकारें अपने दायित्व का भली-भांति निर्वहन करें तथा राज्य में हो रहे जल के आधा धुंध दोहन पर प्रतिबंध लगाएं तथा बिना अनुमति प्राप्त किए किसी भी प्रकार की ट्यूबवेल लगाए जाने पर भी अंकुश लगाएं ,भले ही वह सिंचाई के लिए हो या पीने के पानी के लिए।ऐसे क्षेत्रों में जहां नल से पानी उपलब्ध कराया जा रहा है, वहां पर भूगर्भ के जल के दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाते हुए ऐसा करने पर दंडात्मक कार्यवाही की जाए ,तभी भूगर्भ के जल संरक्षण एवं संवर्धन को गति मिलेगी तथा जल जीवन मिशन के अंतर्गत घर घर नल के माध्यम से पानी पहुंचाने की योजना सफल होगी।


 

 



 



 















 







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