करोड़ों हिन्दुओं का आस्था-स्थल : अमरनाथ धाम

 


करोड़ों हिन्दुओं का आस्था-स्थल : अमरनाथ धाम


 


- नरेन्द्र सहगल -


 


भारत के प्राचीन ग्रंथों और आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री अमरनाथ धाम की पवित्र गुफा सम्पूर्ण सृष्टि के आद्य और आराध्य देव भगवान शिव शंकर का निवास है। इस पवित्र गुफा में प्राकृतिक रूप से बनने वाले बर्फ के शिवलिंग के रूप में स्वयं भगवान शंकर विराजमान होते हैं, अतः यह अमरनाथ धाम सृष्टि के आदिकाल से ही सम्पूर्ण मानव समाज का आस्था स्थल रहा है।


जब मानव का अस्तित्व हिन्दु, मुसलमान और ईसाई इत्यादि वर्गों में विभाजित नहीं था तभी से इस धाम का आध्यात्मिक महत्व चला आ रहा है। इसलिए यह अमरनाथ धाम भी जाति, पंथ और क्षेत्र की संक्रीण दीवारों से दूर सम्पूर्ण जगत से सम्बन्धित है। श्रीनगर के पूर्व में लगभग 140 कि.मी. की दूरी पर स्थित अमरनाथ धाम की पवित्र गुफा लगभग 15000 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। 


50 फुट लम्बी और 25 फुट चौड़ी इस गुफा और तीर्थयात्रा का वर्णन 5 हजार वर्ष पुराने नीलमत पुराण में भी मिलता है। विश्व प्रसिद्ध कश्मीरी इतिहासकार कल्हण ने 12वीं सदी में अपने ग्रंथ राजतरंगिणी में इसका वर्णन किया है। आइना-ए-अकबर में अबुल फजल ने तथा प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक वाल्टयर लॉरेंस ने भी अपने ग्रंथ 'द वैली ऑफ कश्मीर' में इसकी चर्चा की है।


इस स्थान की महानता का पता इसी बात से चलता है कि सुदूर केरल निवासी आदि शंकराचार्य ने यहां पहुंच कर शिवलिंग की पूजा की थी। उनकी स्मृति में श्रीनगर स्थित शंकराचार्य पर्वत पर शंकराचार्य मंदिर भी है। (दुर्भाग्य से कट्टरपंथियों ने इस शंकराचार्य पर्वत का नाम 'तख्त-ए-सुलेमान हिल' कर दिया है) स्वामी रामतीर्थ, स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द यहां पूजा करने आ चुके हैं। भगिनी निवेदिता जो सन् 1898 में स्वामी विवेकानन्द के साथ यहां दर्शनार्थ आईं थीं, उन्होंने भी अपने एक संस्मरण में इस स्थान की पवित्रता, स्नेहिल वातावरण और शांत वादियों का वर्णन किया है।


इस स्थान के अस्तित्व में आने के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव ने अमरनाथ धाम की कथा माता पार्वती को सुनाई थी। इसका रोचक वर्णन मिलता है। देवऋषि नारद ने माँ पार्वती से कहा कि शिव से पूछो कि उनके गले में मुंडमाला का रहस्य क्या है? तब माँ पार्वती के आग्रह पर भोले बाबा ने बताया कि इस माला में तुम्हारे अलग-अलग जन्मों के मुंड हैं। तब माँ पार्वती को अहसास हुआ कि वह भी जन्म मृत्यु के बंधन में है। माँ द्वारा तब अमृत्व के लिए बार-बार आग्रह करने पर भोले शंकर ने अमरनाथ धाम की कथा सुनाना मान लिया।


परन्तु इससे पूर्व भगवान शंकर ने एक गणसेवक प्रकट किया और उसे आज्ञा दी कि आसपास के सारे झाड़ी जंगल जलाकर साफ कर दें, ताकि इस कथा को हम दोनों के अतिरिक्त कोई दूसरा सुन न सके। आज्ञा पाकर गणसेवक ने चारों ओर सफाई कर दी। परन्तु भोले बाबा की मृगचर्म वाली गद्दी के नीचे पड़ा हुआ एक तोते का अंडा उन्हें दिखाई न दिया। भगवान शंकर ने माता पार्वती को कथा सुनानी प्रारम्भ की। कुछ समय तक कथा के बीच में हां-हां कहती माता पार्वती सो गई, परन्तु भोले बाबा इससे अनभिज्ञ हो कथा सुनाते रहे। इसी बीच अंडा फूट गया और उसमें से उत्पन्न तोता माँ पार्वती के स्थान पर हाँ-हाँ करता रहा। इस तरह वह अंडा भी अमरपद को प्राप्त हो गया। महर्षि शुकदेव के रूप में उसे भोले शंकर की कृपा से चारों वेद और 18 पुराणों का ज्ञान प्राप्त हो गया।


 


ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को बताया जा रहा सृष्टि के निर्माण और विनाश का रहस्य कबूतरों के एक जोड़े ने भी सुन लिया। यह दोनों कबूतर भी अमर हो गए। कहते हैं कि यह कबूतर आज भी बर्फानी शिवलिंग के दर्शन करने प्रत्येक वर्ष आते हैं। कई यात्रियों ने इन्हें देखा भी है।


अमरनाथ यात्रा श्रीनगर से 96 कि.मी. दूर पहलगाम से शुरु होती है। यहां सुन्दर पर्वत श्रंखलाएं और घने जंगल यात्रियों के मन को मोह लेते हैं। पहलगाम से पवित्र गुफा 46 कि.मी. की दूरी पर है। हालांकि वाहन मार्ग चंदनबाड़ी तक ही है, जो पहलगाम से उत्तर दिशा की ओर 16 कि.मी. की दूरी पर है। चंदनबाड़ी में रात्रि बिताकर लोग आगे बढ़ते हैं। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने अपनी जटाओं को चंदन से मुक्त किया था, इसलिए इस स्थान का नाम चंदनबाड़ी है। यहां लोग छड़ियां तम्बू किराए पर लेते हैं। यहां की ऊंचाई 7800 फुट है।


यात्रियों का अगला पड़ाव पिस्सू टाप है। मान्यता के अनुसार देवता लोगों की प्रार्थना पर उन्हें तंग कर रहे दानवों को भोले शंकर ने बुरी तरह से पीस कर रख दिया था। उसी स्मृति में इसे पिस्सू टाप कहा जाता है। प्रसिद्ध लिद्दर नदी भी इस यात्रा मार्ग के साथ-साथ बहती है। यात्रियों का तीसरा पड़ाव 11 हजार फुट ऊंची शेषनाग की पहाड़ी है। यहां के बारे में प्रसिद्ध है कि भगवान शिव ने अपने शेषनागों की माला को उतारकर तालाब पर रख दिया था तथा मालाओं को यहीं छोड़ दिया।


कुछ दूर जाकर भगवान शिव ने अपने प्रिय पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया। इसी स्थान का नाम गणेश पर्वत है। जिसे कश्मीरी भाषा में महामानुष कहते हैं। आगे चलकर यात्रा पंचतरणी पहुंचती है। इसके बारे में भी मान्यता है कि यहां भोले बाबा और माता पार्वती ने तांडव नृत्य किया था। यहीं पर भगवान शिव की जटाओं से गंगा की पांच धाराएं फूटी थीं। यहां सभी यात्री स्नान करके तरोताजा होकर उत्साहपूर्वक चलते हुए तीन-चार घंटों में अमरनाथ धाम की गुफा में पहुंचकर बाबा बर्फानी के दर्शन करते हैं।


रक्षा बंधन से एक सप्ताह पूर्व श्रीनगर के दशनामी अखाड़े से पवित्र छड़ी मुबारक यात्रा अखाड़े के महंत स्वामी जितेन्द्र गिरी जी महाराज के नेतृत्व में प्रारम्भ होती है इसी दिन श्रीनगर स्थित शंकराचार्य मंदिर में पूजा अर्चना के बाद यह यात्रा अपने अगले पड़ावों के लिए चलती है। छड़ी यात्रा के साथ हजारों साधु और श्रद्धालु शिवशंकर की जय के उद्घोष करते हुए अमरनाथ धाम की ओर पैदल बढ़ते हैं।


यह छड़ी मुबारक यात्रा मुख्य अमरनाथ यात्रा के सभी पड़ावों पर एक-एक रात्रि रुकती है और वहां पूजा अर्चना के बाद आगे बढ़ती हुई रक्षा बंधन के दिन पवित्र गुफा में पहुंचती है। वहां प्राकृतिक रूप से बने बर्फानी शिवलिंग के पास शिवशक्ति की प्रतीक इस छड़ी को बाकायदा वेदमंत्रों और शिव स्तुति के साथ स्थापित किया जाता है। इसी समय महन्त दीपेन्द्र गिरी सभी साधुओं और श्रद्धालुओं के साथ छड़ी और शिवलिंग की पूजा करते हैं। इस पूजन के बाद अमरनाथ यात्रा सम्पन्न मानी जाती है।

















Narender Sehgal narender1945sehgal@gmail.com




Fri, Jul 19, 8:25 AM (2 days ago)










  

अमरनाथ यात्रा (भाग-2)आतंकवाद के गढ़ में हर-हर महादेव - नरेन्द्र सहगल -9811802320 जिस तरह वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण और महाभारत इत्यादि संस्कृत ग्रंथ भारत के गौरवशाली अतीत को संजोये हुए हैं उसी तरह हमारे तीर्थ स्थल, मेले, पर्व, त्यौहार और धार्मिक यात्राएं हिमालय से कन्याकुमार तक फैले हमारे विशाल देश को एक सूत्र में बांधे हुए है। विश्व के सबसे ऊंचे हिमालय पर्वत की हिमाच्छादित चोटियों पर 15 हजार फुट की ऊंचाई पर श्री अमरनाथ धाम की पवित्र गुफा में पिछले 5 हजार वर्षों से चली आ रही हिमलिंग की पूजा, 350 वर्षों से चली आ रही छड़ी मुबारक यात्रा और 150 वर्षों से चल रही यह वर्तमान अमरनाथ यात्रा निःसंदेह भारत और हिन्दू समाज की एकता और आस्था की प्रतीक है।
भारत भर में फैले सभी तीर्थों में अमरनाथ धाम की यात्रा को बहुत कठिन माना जाता है। सारा मार्ग बर्फ से आच्छादित  और कठिनाइयों से भरा पड़ा है, फिर भी दुनिया भर के हिन्दू यहां गुरु पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा के बीच बड़ी श्रद्धा भक्तिभाव से इसकी पूजा करने आते हैं। हर वर्ष इस यात्रा पर जाने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। प्रारम्भ में इस यात्रा की अवधि एक मास की थी परन्तु तत्कालीन राज्यपाल से.नि. जनरल एस.के. सिन्हा ने इसे दो मास की कर दिया। इस पर तब के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने इसका कड़ा विरोध किया था, परन्तु जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने यात्रा को दो मास तक जाने करने की अनुमति दे दी।  अनेक प्रकार के प्राकृतिक, सामाजिक एवं आतंकी खतरों को चुनौती देते हुए प्रत्येक वर्ष अमरनाथ धाम में बर्फानी बाबा के दर्शनों के लिए निकलने वाली अमरनाथ यात्रा निरंतर प्रगति करती हुई चली आ रही है। पिछले लगभग 30 वर्षों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के शिकार हो रहे जम्मू-कश्मीर प्रांत में राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर रही है यह पवित्र यात्रा। आतंक के गढ़ में हर-हर महादेव के गगनभेदी उद्घोषों का गूंजना इस तथ्य को उजागर करता है कि भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने आध्यात्मिक अमृतपान कर रखा है, इसे कोई मिटा नहीं सकता। याद करें अमरनाथ श्राइन बोर्ड को प्रदेश की सरकार ने जब सन् 2008 में बालटाल (कश्मीर) में 800 कनाल जमीन दी थी तो अलगाववादियों और कट्टरपंथियों ने इसे 'इस्लाम पर खतरा' बताकर बवंडर खड़ा कर दिया था। यह जमीन अमरनाथ यात्रियों के लिए एक अस्थाई विश्रामगृह बनाने के लिए किराये पर दी थी। तब फारुख अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद सईद और अली शाह गिलानी ने इस कदम को 'कश्मीरी राष्ट्रीयता' पर अघात कहकर इसका विरोध किया था। जबकि वास्तव में तो यह हिन्दुओं की आस्था पर आघात था।  पूरे भारत विशेषतया जम्मू के हिन्दू समाज ने संगठित होकर दो माह तक प्रचंड जनांदोलन चलाकर हिन्दुत्व विरोधी सरकार और नेताओं को चुनौती दी थी। सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा। शिवभक्त हिन्दू यात्रियों की इस विजय ने एक इतिहास रच डाला और यह संकेत भी दिया कि यदि समस्त हिन्दू समाज संगठित और शक्तिशाली होकर अपने धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाए तो इतिहास को बदला भी जा सकता है।  पूर्व में अमरनाथ यात्रियों पर तीन बार हुए आतंकी हमलों के बावजूद भी बर्फानी बाबा के भक्तों के सीने तने रहे और यात्रा अबाध रूप से चलती रही। दो दशक पहले अमरनाथ यात्रा मार्ग पर हुए भारी हिमस्खलन की लपेट में आकर 300 से ज्यादा शिवभक्तों ने अपने प्राण गंवा दिए थे। इस प्रकार की भयावह परिस्थितियों में भी अमरनाथ यात्रियों के पांव डगमगाए नहीं। इन दिनों चल रही अमरनाथ यात्रा को भी अनेकविध राजनीतिक, धार्मिक तथा आतंकवादी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। केन्द्र में स्थापित भाजपा सरकार विशेषतया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के निर्देशानुसार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के मार्गदर्शन में की जा रही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था ने आतंकवादियों और अलगाववादियों के जेहादी इरादों को दफन कर दिया है। सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के कारण यात्रियों का उत्साह भी सातवें आसमान पर है। हिन्दू यात्री बैखौफ होकर अपने आद्य देव शिव के दर्शनों के लिए उमड़ रहे हैं। लाखों देशभक्तों के मन में कहीं कोई भय, घबराहट और थकावट का नामोनिशान तक दिखाई नहीं पड़ता। वातावरण ऐसा है कि मानों प्रचंड आस्था के आगे निरंकुश अनास्था ने घुटने टेक दिए हों।  हिन्दू समाज की इस एकता, आध्यात्मिक आस्था और अपने धार्मिक प्रतीकों के प्रति समपर्ण की भावना से घबराकर जम्मू-कश्मीर में सक्रिय अलगाववादियों, पाकिस्तान समर्थकों और कट्टरपंथी कश्मीरी नेताओं के चेहरों की हवाइयां उड़ गई हैं। यात्रियों की सुरक्षा के लिए मातृ तीन घंटे के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद करने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। 'इससे कश्मीरियों को असुविधा हो रही है' जैसे दुष्प्रचार किए जा रहे हैं। अर्थात लाखों हिन्दुओं की जान की रक्षा के लिए यदि थोड़ी देर के लिए कुछ लोगों को असुविधा होती भी है तो यह भी इन्हें बर्दाश्त नहीं है।  वैसे यह कट्टरपंथी और अलगाववादी लोग इस यात्रा के प्रति हमदर्दी दिखाने का मगरमच्छी नाटक भी करते हैं। जब भारी वर्षा एवं बर्फबारी से यही राजमार्ग कई-कई दिनों तक बंद रहता है तब इन कट्टरपंथी कश्मीरी नेताओं को असुविधा नहीं होती क्या? जब प्रधानमंत्री अथवा किसी अन्य केन्द्रीय मंत्री के कश्मीर दौरे पर सारे कश्मीर को बंद कर दिया जाता है तब भी इन्हें आम जनता की असुविधा नजर नहीं आती क्या? असुविधा का यह सारा नाटक भाजपा, हिन्दुत्व और देशविरोधी राजनीति का परिचायक है।  इन मुट्ठीभर हिन्दू विरोधी तत्वों को यह जानकारी तो होगी ही कि यह अमरनाथ यात्रा प्रत्येक वर्ष हजारों कश्मीरियों को रोजगार देकर उनकी कमाई का साधन भी बनती है। होटल वालों, शिकारे वालों, घोड़े वालों, पालकी वालों, जलपान वालों तथा मजदूरों को बहुत बड़ा व्यवसायिक लाभ होता है। कट्टरपंथी नेताओं को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अमरनाथ यात्रा और माँ वैष्णो देवी की यात्राएं सारे जम्मू-कश्मीर के पर्यटन उद्योग का आधार हैं। यह ठीक है कि इन व्यापारी कश्मीरियों के सहयोग से यात्रा सफल होती है, परन्तु यह सहयोग भी सेवाभाव अथवा भाईचारे का न होकर नोट कमाने का साधन ज्यादा होता है। यात्रियों को दी जाने वाली इन सुविधाओं के रेट भी आसमान छू जाते हैं। तो भी हिन्दू यात्रियों की आस्था, हौंसले और आध्यात्मिक निष्ठा का बाल भी बांका नहीं होता।  हिन्दुत्व विरोधी अलगाववाद, जेहादी आतंकवाद और भयंकर बर्फानी तूफान भी इस यात्रा को रोक नहीं सकते। हिन्दुओं की संगठित शक्ति और आस्था का परिचय देने वाली सदियों पहले शुरु हुई यह यात्रा सदियों पर्यन्त चलती रहेगी। सनातन शैव मत के उद्गम स्थल कश्मीर की हिमाच्छादित वादियों में हर-हर महादेव के उद्घोष गूंजते रहेंगे। 
















 




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