आग लागै रुकमा ददरी। मनुष मर जाय ,पै फूटै न गगरी।







बुंदेलखंड के पाठा क्षेत्र के लोकगीत की यह पंक्ति उस क्षेत्र के लिए जल के महत्व का प्रतिपादन करती  है। यूं तो समस्त पाठा क्षेत्र जलाभाव से पीड़ित है, किंतु रुकमा एवं ददरी ग्राम निवासी महिला संबंधित गांव में पानी न होने के कारण पूरे गांव में आग लग जाने की कामना करती है तथा अपने कथन को उपयुक्त प्रमाणित करने के लिए कहती है कि पानी से रहित ऐसे गांव में आग लग जाए  किंतु आग  से पति भले मर जाए पर पानी से भरी हुई गगरी( घड़ा )न फूटे। क्षेत्र में जल की कमी के कारण एक  गगरी( घड़े)पानी की कीमत मनुष्य की जिंदगी से अधिक है। ,यहां पनिहारिन को पति या व्यक्ति का मर जाना तो स्वीकार है किंतु अपनी पानी से भरी हुई गगरी का टूटना स्वीकार्य नहीं है। स्पष्ट है कि पाठा क्षेत्र में पानी के लिए एक घड़े पानी की कीमत व्यक्ति  या मनुष्य के जीवन से अधिक है।पनिहारिने प्रातःकाल से ही जल की व्यवस्था में जुट जाती हैं , गर्मी की ऋतु में तो उनका यही प्रमुख कार्य होता है । यद्यपि राज्य सरकारों ने समय-समय पर बुंदेलखंड को अनेक प्रकार के पैकेज प्रदान किए हैं, जिनके माध्यम से बुंदेलखंड के विकास का लालीपाप वहां के निवासियों को प्रदान किया जाता रहा है, किंतु धरातल पर कहीं भी कुछ भी विकास नहीं दिखाई दे रहा ।स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 साल बाद भी बुंदेलखंड की भूमि आज भी जल बिन प्यासी है। विडंबना है कि नाना प्रकार के विकास का दावा करने वाली राज्य एवं राष्ट्रीय सरकारें आम जनमानस को स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने दिनों बाद भी शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं करा पाई हैं ।उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय पूरे देश में पर्याप्त पानी उपलब्ध था ,लोगों को पेयजल के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी। आम जनता तथा उसके पशुओं के लिए उनके घर के आस-पास ही पर्याप्त जल  उपलब्ध था किंतु आज जल के समस्त स्रोत सूख रहे हैं। भूगर्भ जल का स्तर निरंतर नीचे जा रहा है और पीने के पानी के लिए लोगों को बोतलबंद पानी पर निर्भर होना पड़ रहा है।पेयजल की यह समस्या यूं तो वर्ष भर बनी रहती है किंतु गर्मी के आने के साथ ही यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है ।आकाश से हो रही अग्नि की बरसात एवं उसकी तपिश से जनमानस बेहाल है ,पानी दुर्लभ होता जा रहा है। बुंदेलखंड में तो पानी आज संजोकर रखने ही वस्तु बन गया है। कहने को तो बुंदेलखंड में   पाठा जल योजना के साथ साथ  57 योजनाएं चल रही हैं किंतु वह सब सफेद हाथी के समान ही दिखाई पड़ रही है  ।वह पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं कर पा रही ।फलस्वरूप बुंदेलखंड के समस्त जनपद पानी की समस्या से जूझ रहें हैं।निरंतर पानी के दुर्लभ होते जाने के संदर्भ में उल्लेखनीय हैं की महोबा जिले  में कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल198988 हेक्टेयर था, जबकि उसके सापेक्ष बोवाई मात्र 84870 हेक्टेयर में की गई थी ।यही स्थिति हमीरपुर जिले की  थी यहां कुल कृषि भूमि 390865 हेक्टेयश्रयर है, जिसमें 294816 हेक्टेयर में कृषि कार्य किया जाता है जबकि करीब 32000 हेक्टेयर भूमि सिंचाई के अभाव में  अनुपयोगी है ।बांदा की भी स्थिति भी इनसे भिन्न नहीं है , यहां खेती किसी भी रूप में फायदेमंद नहीं रही ,फलस्वरूप नवयुवकों का पलायन निरंतर हो रहा है और वह कृषि कार्य छोड़कर रोजगार की खोज में बाहर जा रहे हैं जमीन पानी के अभाव में खेत परती पड़े हुए हैं,उनमें प्रायः कृषि कार्य नहीं हो रहा है। चित्रकूट जिले की भी स्थिति यही है , यहां भी नवयुवक कृषि कार्य छोड़कर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं कोई भी ऐसा गांव नहीं है जहां 100- 50 हेक्टेयर भूमि परती व बंजर न पड़ी हो।जनपद में जलस्तर लगभग 20 मीटर नीचे चला गया है और औसत जलस्तर 175 फीट है ,जबकि साल भर पहले  यह लगभग 90 से 120 फीट पर था। यही नहीं चित्रकूट से लगे जनपद प्रयागराज में भी भूगर्भ के


 


जल का स्तर प्रतिवर्ष लगभग 75 फीट नीचे जा रहा है। 

‌ बुंदेलखंड के अंतर्गत उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के 13 जिले आते हैं जिनमें झांसी ,ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, जालौन, टीकमगढ़ ,छतरपुर ,पन्ना ,सागर एवं दतिया आदि जल समस्या से त्रस्त है ।इन जिलों में जहां एक ओर वन भूमि का पूर्ण अभाव है या वन भूमि नाम मात्र की बची है वहीं दूसरी ओर इन जिलों के जल स्रोतों पर बांध आदि बनाकर उनके सतत प्रवाह को बाधित कर दिया गया है और अब खनन माफिया के सौजन्य से बेतहाशा बालू एवं मोरम की खुदाई करते हुए उनके जल स्रोतों को भी समाप्त किया जा रहा है। जिससे उनके समक्ष अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है और वह लगभग समाप्त हो गए हैं तथा अनेक छोटी नदियां गायब हो गई हैं। भूगर्भ जल दोहन पर यदि रोक न लगाई गई तो यह क्षेत्र शीघ्र ही रेगिस्तान बन सकता है और किसी प्रकार के उत्पादक कार्य न होने के कारण महंगाई से जूझने के कारण हो रहे यहां से पलायन को कोई रोक नहीं सकता। बुंदेलखंड की समस्त जल परियोजनाएं दिखावटी हाथी बन कर रह गई हैं, जिन पर शासन के द्वारा अकूत धन राशि फूंकी जा रही है ,किंतु उससे न तो खेती की भूमि की सिंचाई हो पा रही है और न ही जानवरों सहित आदमी को पीने का पानी ही मिल रहा है।फलस्वरूप पानी के अभाव में बुंदेलखंड की समस्त भूमि सहित समस्त जीव जंतु पानी की तलाश में बादलों की ओर ही टकटकी लगाए रहते हैं।

‌ यहां पर बुंदेलखंड में विद्यमान  जल संकट को प्रतीक के रूप में लिया गया है जिसका कारण लेखक का बुंदेलखंड का निवासी होना है। वस्तुतः जो स्थिति आज बुंदेलखंड की है ,लगभग यही स्थिति आज संपूर्ण राष्ट्र की बन गई है और यदि यह कहें यह स्थिति पूर्ण विश्व की बनने जा रही है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज देश का कोना-कोना जल समस्या से ग्रस्त है ।वर्षा ऋतु में जो प्रदेश बाढ़ की समस्या से ग्रस्त थे आज भयंकर सूखे तथा पानी की समस्या से  त्रस्त हैं।वर्ष 2018 में कर्नाटक में अभूतपूर्व बाढ़ देखी थी किंतु अब 2019 में उसके 176 में से 156 तालुके सूखाग्रस्त घोषित हो चुके हैं महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश ,झारखंड ,राजस्थान, मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ इत्यादि समस्त प्रदेश भयंकर जल समस्या का सामना कर रहे हैं। समीक्षकों द्वारा तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका पानी के लिए व्यक्त की जाती रही है किंतु  पानी की उपलब्धता की स्थिति को देखते हुए यह लगने लगा है कि विश्वयुद्ध हो या न हो , परहर गली- मोहल्ले में ,शहर -शहर में ,गांव- गांव में पानी के लिए10-15 वर्ष में ही युद्ध होंगे और भाई- चारे के साथ रह रहे पड़ोसी पानी के लिए आपस में लड़ेंगे । पानी की यह समस्या भारत के साथ साथ समस्त विश्व को भी निरंतर व्यथित कर रही है। अफ्रीका के केपटाउन शहर में पानी पूरी तरह समाप्त हो चुका है।  अरब देश पहले से ही इस समस्या से जूझ रहे हैं किंतु वह अपनी आर्थिक समृद्धि के बल पर समस्या का  तात्कालिक समाधान कर ले रहे हैं किंतु पानी को लेकर उनके समक्ष भी यक्ष प्रश्न खड़ा है ,कब तक पानी की आपूर्ति सहज ढंग से होती रहेगी। निकट भविष्य में पानी का प्रयोग अस्त्र रूप में भी संभावित है । कुछ समय पूर्व पाकिस्तान से तनाव हो जाने पर भारत द्वारा सिंधु नदी के प्रवाह को रोक कर  पानी की उपलब्धता बाधित करने की चेतावनी दी गई थी।पानी की अनुपलब्धता की समस्या पूरे राष्ट्र में पिछले 10-15 साल से चल रही है जिसके मूल में नियमित रूप से वर्षा का न होना तथा सूखा पड़ते रहना है तथा सरकार की गलत नीतियां भी हैं। इन नीतियों का परिणाम ही रहा है कि राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में 10 से 15 फिट तक पानी नीचे चला गया है ,किंतु यही मुख्य कारण नहीं है, इसके अन्य प्रमुख कारणों में से हमारे द्वारा जल स्रोतों का भली-भांति रखरखाव न होना, नदी नालों पर अंधाधुंध बांध बनाना ,चेकडैम बनाना तथा उनके निरंतर प्रवाह को बाधित कर उन्हें समाप्त कर देना, एवं कुआं तालाबों की ओर ध्यान न देकर उनको पाटकर उन पर भूमाफिया द्वारा कब्जा कर लेना आदि  है। जबकि सब जानते हैं कि जल ही जीवन है ,जल के अभाव में जीवन के अस्तित्व को बचाए रख पाना संभव नहीं है ।फलस्वरूप जीवन की सुरक्षा हेतु जल की सुरक्षा भी अत्यंत आवश्यक है ,किंतु इस दिशा में व्यक्ति, राज्य या सरकार की ओर से सहज रूप में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।जल स्रोत निरंतर समाप्त हो रहे हैं तथा भूगर्भ का जल निरंतर हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है। भारत में विश्व की आबादी का 18% भाग निवास करता है किंतु उसके लिए हमें विश्व में उपलब्ध पेय जल का मात्र 4% हिस्सा ही उपलब्ध है। नीति आयोग के एक ताजा सर्वे के अनुसार भारत में 60 करोड़ आबादी गहरे भीषण जल संकट का सामना कर रही है ।अपर्याप्त और  प्रदूषित जल के उपभोग से भारत में हर साल 200000 लोगों की मौत हो जाती है ।यूनिसेफ द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण के अनुसार भारत में दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर जिस प्रकार पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं, उससे लगता है कि 2030 तक भारत के21 महानगरों का जल पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और वहां पानी अन्य शहरों से लाकर उपलब्ध कराना होगा।

‌ विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण से स्पष्ट है कि पिछले 7 दशकों में विश्व की आबादी दोगुने से भी अधिक बढ़ गई है, किन्तु पानी की उपलब्धता किसी भी रूप में न बढ़कर कम ही हुई है, जिसके कारण लोगों तक पानी की उपलब्धता निरंतर कम होती जा रही है। पानी की अनुपलब्धता के साथ साथ उसकी स्वच्छता एवं शुद्धता भी प्रभावित हो रही है ।प्रायः अशुद्ध एवं गंदा पानी एक बड़े वर्ग द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है। फलस्वरूप गंदे पानी के उपयोग से डायरिया ,टायफाइड, हैजा जैसी जल जनित बीमारियां पैदा हो रही है।उक्त बीमारियों के साथ ही साथ अन्य अनेक बीमारियां तो अशुद्ध जल के उपयोग से पैदा हो रही हैं या किसी बीमारी के हो जाने पर यह अशुद्ध जल उक्त बीमारियों को असाध्य बनाने में सहयोग कर रहा है।स्लोवाकिया की एक कहावत है शुद्ध जल विश्व की प्रथम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण औषधि है ,जिसका तात्पर्य है स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ जल प्रथम आवश्यकता है, जिस की पर्याप्त उपलब्धता अनिवार्य आवश्यकता है, जिसके अभाव में स्वस्थ जीवन ही कल्पना नहीं की जा सकती।

‌ शुद्ध जल की आपूर्ति समस्त विश्व की समस्या है किंतु यह समस्या अन्य देशों की तुलना में भारत के लिए अत्यंत गंभीर है। अन्य विकासशील तथा विकसित देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत चिंतित तथा जागरूक रहते हैं। वह शुद्ध जल की व्यवस्था कर लेते हैं किंतु भारत में राज्य सरकार द्वारा सामान्य जन के लिए अब तक शुद्ध जल की व्यवस्था नहीं हो पाई। कुछ व्यवसायिक बहुराष्ट्रीय कंपनियां मौके का फायदा उठाते हुए भूगर्भ के जल का असीमित दोहन कर बोतलबंद पानी बेचकर असीमित लाभ उठा रही हैं किंतु उनके पानी की गुणवत्ता तथा स्वच्छता एवं शुद्धता भी किसी स्तर पर प्रमाणित नहीं है ,परीक्षण करने पर बहुधा दूषित जल बेची जा रही बोतलों में पाया जाता है। ं

‌ पानी की आवश्यकता को देखते हुए देश की जल नीति में प्रथम स्थान पेय जल को प्राप्त है ,उसके पश्चात सिंचाई तथा उद्योगपतियों को स्थान दिया गया है। व्यवहार में स्थिति बिल्कुल भिन्न है। पेयजल की समस्या के निवारण के लिए कहीं कोई प्रयास नहीं किया जा रहा, अपितु कारोबारियों ,उद्योगपतियों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने बोतल बंद पानी, शीतल पेय जैसे उत्पादों को तैयार कर मालामाल होने के लिए असीमित जल हर समय उपलब्ध कराया जाता है तथा उन्हें स्वयं भूगर्भ के जल का असीमित दोहन करने का लाइसेंस प्रदान किया जाता है, जिससे संबंधित क्षेत्र में जल स्तर निरंतर गिरता चला जा रहा है और भूगर्भ के अंदर कभी विद्यमान रहा असीमित जल निरंतर कम होता जा रहा है।

‌ अभी समय है ,प्रत्येक व्यक्ति, राज्य एवं सरकार को नित्य प्रति बढ़ रही पानी की कमी तथा भूगर्भ जल के स्तर में हो रही गिरावट को दृष्टि में रखकर उसकी उपलब्धता तथा वृद्धि हेतु सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है ,जिसके लिए आवश्यक है कि हम हम अपनी संस्कृति की आधारभूत नदी माताओं के अस्तित्व को पुनः स्वीकार करें तथा उनके संरक्षण संवर्धन की दिशा में कार्य कर उन्हें जल की गंभीर राशि से पूर्ववत परिपूर्ण बनाएं। आज नदियों के अस्तित्व को अस्वीकार कर उन्हें महज सिंचाई का साधन ,विद्युत उत्पादन का केंद्र आदि मानकर उन पर बांघ आदि बनाने का कार्य किया जा रहा है।औ फलस्वरूप छोटी बड़ी नदियों पर अनगिनत बांधों का निर्माण कर दिया गया और यह नहीं देखा गया कि इन बांधों के निर्माण से संबंधित नदी का अस्तित्व रहेगा या नहीं, जिसके चलते इस देश में महानदियों के रूप में स्वीकार की गई गंगा, यमुना, कृष्णा , गोदावरी ,नर्मदा ,कावेरी आदि सहित अनेकानेक नदियां जल प्रवाह के बाधित हो जाने से जलराशि के कम हो जाने पर जीर्ण  -शीर्ण -काय होकर लुप्त होने के कगार में हैं ।इतना ही नहीं इन महानदियों को जल की अजस्र राशि उपलब्ध कराने वाली अनेकानेक छोटी नदियां पूर्णरूपेण लुप्त हो गई है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हिंडोन तथा काली नदी के मात्र अवशेष बचे हैं किंतु उनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। परिणाम स्वरूप इन नदियों और बांधों से न तो कृषि भूमि की सिंचाई हो पा रही है और न ही समस्त जीव-जंतुओं को जीवन यापन हेतु पेयजल ही प्राप्त हो पा रहा है ,अपितु जल प्रवाह बाधित होने से समीपस्थ निवासियों के समक्ष भयंकर जल संकट उत्पन्न हो रहा है, जिसके निदान हेतु नीति नियंताओं को चाहिए था कि वह बांधों के निर्माण हेतु नीति बनाते समय यह अवश्य सुनिश्चित कर लेते कि किसी भी नदी के जल को उस स्तर तक ही नियंत्रित करना है ,जिससे उसका सतत प्रवाह किसी भी रूप में बाधित न हो ,उसका जीवन चलता रहे तथा वह अपने गंतव्य तक निश्चित रूप से पहुंच जाएं ,अन्यथा स्थिति में समीपस्थ क्षेत्र के जलस्तर का नीचे जाना किसी भी स्थिति में नहीं रोका जा सकता ।साथ ही भारतीय संस्कृति के जलाधार कुंओं- तालाबों को भी पर्याप्त संरक्षण मिलना चाहिए जिससे वह एक ओर तो पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराते रहें, वहीं दूसरी ओर अपने अस्तित्व को बनाए रखने के साथ साथ भूगर्भ के जलस्तर को भी पर्याप्त उन्नत स्तर तक बनाए रख सकें। भूगर्भ के जल के अपरिमित दोहन पर  प्रतिबंध भी लगाना होगा। सिंचाई के नाम पर या उद्योग धंधों के संचालन के नाम पर असीमित भूगर्भ जल दोहन जल समस्या को ही मूर्त रूप देगा। इन पर कठोर नियंत्रण किया जाना आवश्यक है, तभी भूगर्भ जलस्तर में वृद्धि हो सकती है। इस समय देश में हो रही कमजोर बारिश तथा कमजोर जल प्रबंधन के कारण वर्षा का जल संरक्षित न हो पाने के कारण आवश्यकतानुसार जल उपलब्ध न होकर निरंतर कम पड़ता जा रहा है।अब पानी सहेजने के लिए कुछ कारगर उपाय सरकार के साथ-साथ जनमानस को भी करना होगा। प्रायः देखा जाता है कि बरसात का पानी बह कर निकल जाता है उसको रोकने  तथा उसके संरक्षण के लिए छोटे-छोटे बांध और तालाब बनाने में समाज और सरकार दोनों को ही आगे बढ़ कर कार्य करना होगा, जिससे बरसात का पानी सुरक्षित तथा संरक्षित हो जिससे भूगर्भ का जलस्तर सहज रूप में ऊपर उठे। इस साल जहां एक और भयंकर गर्मी पड़ने के कारण पानी की समस्या मुंह बाए खड़ी है वहीं दूसरी ओर अल नीनो प्रभाव के कारण वर्षा में 7% कमी होने की बात कही गई है । मौसम विभाग ने भी 3% कम वर्षा होने का अनुमान लगाया है। कर्नाटक महाराष्ट्र ,उत्तर प्रदेश आदि समस्त राज्यों के बांध एवं जलाशय लगभग जल रहित हो चुके हैं, कम बारिश होने पर उनके आगे आने वाले दिनों में भी जल से परिपूर्ण होने की संभावना नहीं बनती। आज आवश्यकता है कि हम अपने जल संचयन की क्षमता को बढ़ाते हुए वर्षा के अधिकाधिक / समस्त जल को संरक्षित करें तथा वर्षा जल की एक बूंद को भी व्यर्थ में बहने न दें ,तभी हमारा प्रयास सार्थक होगा और जल समस्या से मुक्ति मिलेगी अन्यथा भयंकर परिणाम सामने होंगे।


 

 



 



 















 







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