केंद्रीय मंत्री श्री तोमर के मुख्य आतिथ्य में मनाया गया भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 92वां स्थापना दिवस
दुनिया में प्रतिस्पर्धा करने के लिए खेती की लागत कम कर उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाएं-तोमर
कानूनी बदलाव एवं कांट्रेक्ट फार्मिंग के माध्यम से छोटे किसानों को लाभ पहुंचाया जाना जरूरी
देश में आयात पर निर्भरता कम करने और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पादों को बढ़ाने की जरूरत
विभिन्न श्रेणियों में संस्थाओं, वैज्ञानिकों, कार्मिकों, किसानों व मीडियाकर्मियों को पुरस्कार प्रदान
नई दिल्ली । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 92वां स्थापना दिवस एवं पुरस्कार वितरण समारोह केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुख्य आतिथ्य में । कार्यक्रम में विभिन्न श्रेणियों में संस्थाओं, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, कार्मिकों, किसानों व मीडियाकर्मियों को पुरस्कार दिए गए। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हुए इस कार्यक्रम में श्री तोमर ने कहा कि दुनिया में प्रतिस्पर्धा करने के लिए देश में खेती की लागत कम करते हुए उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है।
समारोह में श्री तोमर ने कहा कि आईसीएआर के वैज्ञानिकों के प्रयासों से संस्थान 90 साल से अधिक समय से देश को कृषि के क्षेत्र में आगे ले जाने में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है। वो समय भी हम सबके ध्यान में है, जब कृषि का क्षेत्र बढ़ते हुए समय के साथ एक तरह से अविकसित था। उस समय आईसीएआर ने इस चुनौती को स्वीकार किया, हमारे वैज्ञानिकों ने नए-नए अनुसंधान किए, उन अनुसंधानों को किसानों के पास गांवों में पहुंचाने का सफलतम प्रयत्न किया, किसानों ने भी यह जानते हुए भी घनघोर परिश्रम किया कि यह घाटे का काम है। नई सारी पद्धतियों का क्रियान्वयन खेत में हो, इस मामले में किसानों का योगदान अविस्मरणीय है। वैज्ञानिकों का अनुसंधान व किसानों का परिश्रम, इसी का परिणाम है कि आज भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं, अधिशेष राष्ट्र है।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि कोरोना वायरस के संकट से सारी दुनिया गुजर रही है, लाकडाउन की स्थिति में भी असुविधाओं का सामना देश-दुनिया को करना पड़ा है, सारे साधन व टैक्नालाजी से लैस तमाम संस्थान है, जिनकी गतिविधियां बंद हो गई थी, लेकिन भारत में कृषि का क्षेत्र ऐसी अवस्था में भी संचालित रहा है। यह भारत के लिए उपलब्धि है और किसान भी बधाई के पात्र है, जिन्होंने विकल्प खोजें व पैदावार को क्षति नहीं होने दी, वहीं भारत सरकार ने भी ध्यान दिया, जिसके कारण उनके लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध रहें और बंपर पैदावार हुई, समर्थन मूल्य पर खरीद का भी रेकार्ड बना। इसी का परिणाम है कि कोरोना वायरस के इस संकट के दौर में 8 महीने तक देश के लगभग 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने का ऐतिहासिक काम सरकार कर पा रही है। भारत की इस हैसियत का श्रेय निश्चित रूप से किसानों व कृषि वैज्ञानिकों को दिया जाना चाहिए, जिनके कारण खाद्यान्न का देश में भंडार है।
श्री तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी लगातार इस पर बल देते रहते हैं कि हमारी बुनियाद मजबूत होना चाहिए, चाहे वे विषय ग्रामीण विकास से संबंधित हो या कृषि की प्रगति से संबंधित हो। कृषि के क्षेत्र में हम आगे बढ़ सकें, इस दिशा में सरकार की सोच विभिन्न कार्यक्रमों व बजट के दौरान पिछले पांच-छह वर्ष में प्रदर्शित हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में भी अधोसंरचनाएं बढ़े और जनजीवन में सुधार आएं तथा जो मौलिक सुविधाएं देश में संपन्न घरों में होती है, वे भी गांवों के गरीब आदमी के घर में पहुंचे, इसके लिए अभियान चलाए गए है, मिशन मोड में भी काम किया गया है, जिसके परिणाम परिलक्षित हो रहे है।
श्री तोमर ने कहा कि लंबे समय से अनुभव किया जा रहा था कि कृषि क्षेत्र में नए रिफार्म होना चाहिए, कांट्रेक्ट फार्मिंग को बल मिलना चाहिए, उसे कानूनी जामा पहनाना चाहिए, तो पिछले दिनों कृषि उत्पादों के संबंध में जो अध्यादेश लाया गया, उसके कारण निश्चित रूप से किसानों को संपूर्ण रूप से आजादी प्राप्त हो गई। यह प्रधानमंत्री जी का साहसपूर्ण कदम है। कांट्रेक्ट फार्मिंग के लिए भी कानून बन जाएं, यह चर्चा लंबे समय से थी। प्रधानमंत्री जी मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तिकरण और संरक्षण अध्यादेश लाएं तथा अत्यावश्यक वस्तु अधिनियिम में संशोधन के माध्यम से रिफार्म किए गए, जिनका फायदा किसानों को मिलने वाला हैं। इन रिफार्म के फायदे किसानों को कैसे मिलें और नए कानून की सफलता में आईसीएआर की क्या भूमिका हो सकती है, इस पर विचार करना चाहिए।
श्री तोमर ने कहा कि नया अध्यादेश लाए जाने के बाद कांट्रेक्ट फार्मिंग के माध्यम से ट्रेडर्स का भले ही फायदा हो, लेकिन गांवों में छोटे किसानों तक इनकी पहुंच व क्षेत्रवार क्लस्टरों के माध्यम से इन्हें लाभ पहुंचाया जाना जरूरी है। इस गेप को आईसीएआर केवीके के माध्यम से भर सकती है। उन्होंने कहा कि कृषि के क्षेत्र में आईसीएआर की प्रगति की जितनी प्रशंसा की जाएं, कम है लेकिन अभी और भी काम करना शेष है। दुनिया से प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं तो खेती की लागत कम करते हुए उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाना होगी। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से भी निपटना होगा। इन सबमें आईसीएआर की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्थापना दिवस के अवसर पर यह सबका जज्बा होना चाहिए व आईसीएआर परिवार इस दसवें दशक में संकल्प करें कि शताब्दी वर्ष आने तक रोडमैप बनाकर पूसा संस्थान को राष्ट्रीय संस्थान से बढ़कर अंतरराष्ट्रीय संस्थान बना देंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि आप सब इसमें निश्चित ही सफल होंगे।
श्री तोमर ने कहा कि आयात पर निर्भरता कम करने, स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों को बढ़ाने तथा दलहन-तिलहन के क्षेत्र में भी उत्पादकता और बढ़ाने पर काम करने की जरूरत है। पाम आयल का उत्पादन बढ़ाने के लिए, अनुसंधान करते हुए संबंधित खेती बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने तिलहन की नई किस्में ईजाद करने पर भी जोर दिया, साथ ही कहा कि दलहन उत्पादन में हम आत्मनिर्भरता के निकट पहुंचे हैं, विश्वास है कि तिलहन के मामले में भी हम ऐसी ही सफलता को दोहराएंगे और खाद्य तेलों के आयात पर होने वाले खर्च में कमी ला पाएंगे।
समारोह में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि आईसीएआर ने फसलों की अनूठी किस्में विकसित कर भारत का नाम रोशन किया है। भारत को सभी क्षेत्रों में अग्रणी करने में आईसीएआर को और बढ़कर योगदान देना चाहिए। राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में सतत काम करने की जरूरत है। आत्मनिर्भर भारत बने, उसमें कृषि क्षेत्र की बड़ी भूमिका होगी।
इस अवसर पर नए 8 उत्पादों का लोकार्पण और 10 प्रकाशनों का विमोचन किया गया। आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने परिषद की उपलब्धियां और आगामी योजनाएं बताईं। आईसीएआर की स्थापना 16 जुलाई 1929 को हुई थी। देशभर के 102 संस्थान व राज्यों के 71 कृषि विश्वविद्यालय इससे जुड़े हुए हैं। समारोह में आईसीएआर के सचिवसंजय सिंह, अन्य अधिकारी-कर्मचारी, वैज्ञानिक-शिक्षक व संस्थानों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।