मुट्ठी भर पूँजीपतिओं के पास 70% आबादी के बराबर धन है, जो भारतीय समाज में समानता के मुद्दे पर घातक सिद्ध हो सकता है - प्रो डॉ आसमी रज़ा

नई दिल्ली - विश्व में कोविड 19 के प्रकोप से होने वाली तबाही के कारण जहां एक और आबादी पर असर पड़ रहा है वहींं काफी संख्या में रोज़गार पर असर देखने को मिल रहा है। छोटे और मंझोले व्यापार लगभग समाप्त से होते दिखाई दे रहे हैं, ऐसे में भारत में इस समय लगभग 37 प्रतिशत बेरोज़गारी अतिरिक्त बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही । इस मुद्दे पर दिल्ली विश्व विद्यालय के अर्थशास्त्रीय, विश्लेषक एवं समीक्षक प्रो0 डॉ0 आसमी रज़ा ने ऑक्सफैम इंटरनैशनल की ताज़ा रिपोर्ट के हवाले से चिंता व्यक्त करते हुए कहा की भारत के 1.5 % उद्योगपतिओं और ज़मींदारों का देश की 62% संपत्ति पर क़ब्ज़ा है और लगभग 64 से 65 पूँजीपतिओं के पास 70% आबादी के बराबर धन अर्जित किया हुआ है। जो आने वाले समय में भारतीय समाज में समानता के मुद्दे पर घातक सिद्ध हो सकता हैं। इसका समाधान भारत के लिए एक मात्र आर्थिक न्याय ही समुचित नीति है जो भारत को आर्थिक मंदी से उभार सकता है। प्रो0 रज़ा ने कहा कि ऑक्सफैम इंटरनैशनल की ताज़ा रिपोर्ट कह रही है कि सरकार के 2018-19 के बजट के हिसाब से देश की आधी से अधिक सम्पत्ति देश के 64 अरबपतियों के पास है। इस रिपोर्ट के अनुसार इस देश में लगातार तीन साल से धनपत्तिओं का और अधिक सम्पत्ति अर्जित करने का सिलसिला जारी है, इससे स्पष्ट है कि गरीब और गरीब होता जा रहा है। देश में गरीबी दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। 2019 के एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश के एक प्रतिशत धनवान हर दिन 2200 करोड़ कमाते हैं। तथा 2018 के इसी सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की 73 प्रतिशत संपत्ति अर्जित है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार कुल आठ लोगों को पास दुनिया की आधी आबादी के बराबर दौलत है। ऐसे में इसका दुष्प्रभाव उनलोगों पर पड़ सकता है जो शिक्षित होने के वाबजूद धनपत्तिओं या सरकार के यहां नौकरी करके अपना अपने परिवार लालन पालन कर रहे हैं लेकिन इससे भी बुरा प्रभाव उन लोगों पर पड़ेगा जो कम पूंजी में अपना व्यापार तथा वैसे लोग जो दिहाड़ी मज़दूरी कर गुज़र बसर करते हैं। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ऑक्सफैम के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 62 प्रतिशत संपत्ति देश के 1.5 प्रतिशत अमीरों के पास है यानी भारत में अमीरों और गरीबों के बीच असंतुलन दुनिया के औसत से ज्यादा है। दुनिया में शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास औसतन 62 प्रतिशत संपत्ति है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 64 अरबपतियों के पास 220 अरब डॉलर (लगभग 16.610 लाख करोड़ रुपये) की संपत्ति है जो देश के आर्थिक पायदान पर नीचे की 75 प्रतिशत आबादी की कुल संपत्ति के बराबर है। वर्ल्ड इकोनॉमी फ़ोरम (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक से पहले जारी की गयी इस रिपोर्ट के अनुसार कुल आठ लोगों को पास दुनिया की आधी आबादी के बराबर दौलत है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 84 शीर्ष अमीरों के पास 248 अरब डॉलर (16.90 लाख करोड़ रुपये) की संपत्ति है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी 19.3 अरब डॉलर के साथ भारत के सबसे अमीर आदमी हैं। दिलीप संघवी (16.7 अरब डॉलर) और अजीम प्रेमजी (15 अरब डॉलर) दौलत के मामले में दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे। रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल दौलत 31 खरब डॉलर है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की कुल दौलत 2557 खरब डॉलर है। इसमें से 65 खरब डॉलर संपत्ति केवल तीन अमीरों बिल गेट्स (75 अरब डॉलर), अमेंसियो ओट्रेगा (67 अरब डॉलर) और वारेन बफेट (60.8 अरब डॉलर) के पास है। “एन इकोनॉमी फॉर द 99 पर्सेंट” नामक रिपोर्ट में ऑक्सफेम ने कहा है कि अब वक्त आ गया है कि कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने वाली अर्थव्यवस्था की बजाय एक मानवीय अर्थव्यवस्था बनायी जाए। रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 से ही दुनिया के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों लोगों को पास बाकी दुनिया से ज्यादा दौलत है। रिपोर्ट में कहा गया है, “अगले 20 सालों में 500 अमीर लोग अपने वारिसों को 21 खरब रुपये देंगे। ये राशि 135 करोड़ आबादी वाले देश भारत की कुल जीडीपी से अधिक है।” रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में चीन, इंडोनेशिया, लाओस, भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश के शीर्ष 10 प्रतिशत अमीर लोगों की आय में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं इस दौरान इन देशों की सबसे गरीब 10 प्रतिशत आबादी की ससंपत्ति में 15 प्रतिशत की कमी आयी है। भारत की कृषक भूमि 1970 से 1,400 लाख हेक्टेयर के आसपास है। लेकिन गैर कृषि कार्यों के लिए भूमि का उपयोग 1970 में 196 लाख हेक्टेयर से 2011-12 में 260 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है। अकेले 2000-2010 के दशक में करीब 30 लाख हेक्टेयर कृषि जमीन गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग में लाई गई है।दूसरी तरफ जो बंजर और असिंचित भूमि 1971 में 280 लाख हेक्टेयर थी, वह 2012 में घटकर 170 लाख हेक्टेयर रह गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नई कृषि भूमि पर भारत का खाद्य उत्पादन टिका है। लेकिन इस भूमि का अधिकांश हिस्सा बारिश के जल पर निर्भर है। यही वजह है कि किसानों की आय को दोगुना करना एक बड़ी चुनौती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि के दायरे में आई जमीन की उर्वरता और सेहत ठीक नहीं है। इस जमीन को उपजाऊ और आर्थिक रूप से सार्थक बनाने के लिए बहुत ध्यान देने की जरूरत है। प्रो0 डॉ0 रज़ा ने वर्ल्ड इकोनॉमी फ़ोरम (डब्ल्यूईएफ) और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ऑक्सफैम के उपरोक्त रिपोर्ट तथा आर्थिक मामले के वरिष्ठ विश्लेषक रोशन लाल अग्रवाल की लिखित पुस्तक line of wealth पर अपनी प्रति किर्या देते हुए कहते हैं की इस समय भारत को आर्थिक मंदी से उभारने तथा बेरोज़गारी के समस्या का एक मात्र समाधान भी मुझे यही प्रतीत होता हैं की सरकार भारत में चल अचल सम्पत्ति की एक औसत सीमा तय करके उस पर वर्तमान मूल्यों के हिसाब से टेक्स लागू करने पर विचार करे इससे भारत का ग्रोथ रेट तीन गुना से चार गुना बढ़ने की संभावना है। तथा बेरोज़गारी की समस्या का पूर्ण समाधान है। हम सभी को एक बार अमीरी रेखा के औसत सीमा को तय करने पर विचार करना चाहिए।


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